Kumbh 2019:पौष पूर्णिमा स्नान के साथ आज से कल्पवास शुरू, जानें क्या हैं इसके नियम
दिव्य कुम्भ में आज से गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगमतट पर कल्पवास शुरू हो रहा है। जीवन-मृत्यु के बंधनों से मुक्ति की कामना लेकर संगम की रेती में आने वाले कल्पवासी यहां से अलौकिक शक्ति बटोर कर...
दिव्य कुम्भ में आज से गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगमतट पर कल्पवास शुरू हो रहा है। जीवन-मृत्यु के बंधनों से मुक्ति की कामना लेकर संगम की रेती में आने वाले कल्पवासी यहां से अलौकिक शक्ति बटोर कर ले जाएंगे। प्रयाग में कल्पवास की परंपरा और मान्यता से संबंधित प्रस्तुत है रिपोर्ट।
कल्पवास का वैज्ञानिक महत्व:
आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. टीएन पांडेय के अनुसार कल्प का अर्थ कायाकल्प से है। कल्पवास शरीर का आध्यात्मिक चेतना से जोड़ता है। इसमें एक माह गंगाजल का सेवन, एक समय भोजन, भजन, सत्संग, कीर्तन, सूर्यदेव को नियमित अर्घ्य से मन, वचन और कर्म की शुद्धि होती है। गंगातट पर रहने से शरीर के अंदर में व्याप्त काम, क्रोध, लोभ और मद खत्म हो जाता है।
क्या है कल्पवास
मान्यता के अनुसार कल्प का अर्थ युग से है और वास का अर्थ है रहना। अर्थात किसी पवित्र तीर्थ भूमि में कठिनाई के साथ अनुरक्ति और विरक्ति दोनों भावनाओं से प्रेरित होकर निश्चित समय तक रहने को कल्पवास कहते हैं।
कौन कर सकता है कल्पवास
कल्पवास सभी महिला-पुरुष कर सकते हैं। विवाहित महिलाओं का पति के साथ कल्पवास करना चाहिए। विधवा महिलाएं अकेली ही कल्पवास कर सकती हैं। शास्त्रों में मानव जीवन के चार आश्रम माने गए हैं। इसमें ब्रहा्चर्य, गृहस्थ्, वानप्रस्थ और संन्यास में बांटा गया है।
कल्पवास की अवधि:
कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात मानी जाती है। लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तीन रात, एक माह, तीन माह, छह माह, छह वर्ष और 12 वर्ष या जीवन भर कल्पवास कर सकते हैं। इस बारे में शास्त्रों में मान्यता है...
कल्प: कल्पर्यन्त: वास: एव वास: यस्य स: कल्पवास:। (अर्थात एक माह तक किया जाने वाला कल्पवास ही अच्छा कल्पवास है।)
पूजनीय है तुलसी, जौ
कल्पवासियों को अपने शिविर के सामने तुलसी का पौधा रोपने और जौ बोने की परंपरा है। वैदिक संस्कृति में तुलसी और जौ को सबसे ज्यादा पूज्यनीय माना जाता है। तुलसी का बिरवा श्रद्धालु अपने साथ लेकर आते हैं।
कल्पवास के नियम
पद्मपुराण के अनुसार कल्पवास के कई नियम बताए गए हैं। इसमें झूठ न बोलना, घर-गृहस्थ की चिंता से मुक्त रहना, तीन बार गंगा में स्नान करना, शिविर में तुलसी का बिरवा रोपना, ब्रहा्चर्य का पालन करना, खुद या पत्नी का बनाया भोजन करना, कथा-प्रवचन सुनना, स्वल्पाहार या फलाहार करना, सांसारिक चिंता से मुक्ति, इंद्रियों पर संयम, पितरों को पिंडदान, अहिंसा, विलासिता और परनिद्रा का त्याग आदि शामिल है।
कल्पवास के लिए वानप्रस्थ का समय सबसे उपयुक्त
इसमें ब्रहा्चर्य (0-25) का अध्ययन काल, गृहस्थ (25-50 वर्ष) विवाह, संतोनोत्पत्ति और धनार्जन, वानप्रस्थ (50-75 वर्ष) और संन्यास आश्रम (75-100) वर्ष है। इसमें वानप्रस्थ (50-75 वर्ष) के समय को कल्पवास के लिए उपयुक्त समय माना गया है। इसमें अधिकतर लोग घरेलू जिम्मेदारियों से मुक्त होने के साथ उनके उत्तराधिकारी भी तैयार हो जाते हैं। इसलिए इस अवस्था में कल्पवास उचित माना गया है।