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Jivitputrika Vrat 2021: जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत कब है? नोट कर लें डेट, शुभ मुहूर्त और संपूर्ण पूजन विधि

हिंदू धर्म में कई व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। जिनमें से एक जिउतिया व्रत भी है। इस व्रत को जीवित्पुत्रिका और जितिया व्रत भी कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि...

Jivitputrika Vrat 2021: जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत कब है? नोट कर लें डेट, शुभ मुहूर्त और संपूर्ण पूजन विधि
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीWed, 01 Sep 2021 05:48 AM

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हिंदू धर्म में कई व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। जिनमें से एक जिउतिया व्रत भी है। इस व्रत को जीवित्पुत्रिका और जितिया व्रत भी कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के जीवित्पुत्रिका व्रत होता है। जितिया व्रत को माताएं अपनी संतान के दीर्घ, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए व्रत रखती हैं। जितिया व्रत पर भी छठ पूजा की तरह नहाए-खाए की परंपरा होती है। इस साल जितिया व्रत 29 सितंबर को रखा जाएगा। जिसे नवमी तिथि यानी अगले दिन पारण किया जाता है। नहाय-खाए के साथ जीवित्पुत्रिका व्रत शुरू हो जाता है। यह उपवास मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। इस साल जितिया व्रत 28-30 सितंबर तक मनाया जाएगा। जानिए जितिया व्रत से जुड़ी जरूरी बातें-

जितिया व्रत शुभ मुहूर्त 2021-

जीवित्पुत्रिका व्रत- 29 सितंबर 2021
अष्टमी तिथि प्रारंभ- 28 सितंबर को शाम 06 बजकर 16 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त- 29 सितंबर की रात 8 बजकर 29 मिनट से। 

नहाए-खाए-

जितिया व्रत के पहले यानी नहाए खाए को सूर्यास्त के बाद कुछ खाना नहीं चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से व्रत खंडित हो जाता है।

तीन दिन तक चलता है व्रत-

जितिया व्रत तीन दिनों तक चलता है। पहला दिन नहाए-खाए, दूसरा दिन जितिया निर्जला व्रत और तीसरे दिन पारण किया जाता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत पूजन विधि-

स्नान आदि करने के बाद सूर्य नारायण की प्रतिमा को स्नान कराएं। धूप, दीप आदि से आरती करें और इसके बाद भोग लगाएं। इस व्रत में माताएं सप्तमी को खाना और जल ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करती हैं और अष्टमी तिथि को पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। नवमी तिथि को व्रत का समापन किया जाता है।

जितिया व्रत का महत्व-

जीवित्पुत्रिका व्रत से कई कथाएं जुड़ी हैं। जिनमें से एक कथा महाभारत से जुड़ी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए उत्तरा की गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्नास्त्र का इस्तेमाल किया। उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना जरूरी था। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने उस बच्चे को गर्भ में ही दोबारा जीवन दिया। गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर फिर से जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया। बाद में यह राजा परीक्षित के नाम से जाना गया।  

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