Jivitputrika vrat 2019: सन्तान की लंबी उम्र के लिए निर्जला ऱखा जाता है ये व्रत
उत्तर प्रदेश और बिहार में संतान की लंबी आयु के लिए महिलाएं जिउतिया का निर्जला व्रत रखती हैं। अश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन यह व्रत रखा जाता है और अगले दिन इसका पारण किया जाता है। इस व्रत को...
उत्तर प्रदेश और बिहार में संतान की लंबी आयु के लिए महिलाएं जिउतिया का निर्जला व्रत रखती हैं। अश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन यह व्रत रखा जाता है और अगले दिन इसका पारण किया जाता है। इस व्रत को रखने वाली महिलाएं रात में सरगी खाकर व्रत का शुरू करती हैं।
इस व्रत को जितिया या जीउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जानते हैं। अश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत का बड़ा महात्म्य है। गोबर-मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा कुश के जीमूतवाहन व मिट्टी -गोबर से सियारिन व चूल्होरिन की प्रतिमा बनाकर व्रती महिलाएं जिउतिया पूजा करेंगी। फल-फूल, नैवेद्य चढ़ाए जाएंगे। जिउतिया व्रत में सरगही या ओठगन की परंपरा भी है।
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इस व्रत में सतपुतिया की सब्जी का विशेष महत्व है। रात को बने अच्छे पकवान में से पितरों, चील, सियार, गाय और कुत्ता का अंश निकाला जाता है। सरगी में मिष्ठान आदि भी होता है।मिथिला में मड़ुआ रोटी और मछली खाने की परंपरा जिउतिया व्रत से एक दिन पहले सप्तमी को मिथिलांचल वासियों में भोजन में मड़ुआ रोटी के साथ मछली भी खाने की परंपरा है। जिनके घर यह व्रत नहीं भी होता है उनके यहां भी मड़ुआ रोटी व मछली खायी जाती । व्रत से एक दिन पहले आश्विन कृष्ण सप्तमी को व्रती महिलाएं भोजन में मड़ुआ की रोटी व नोनी की साग बनाकर खाएंगी। ज्योतिषाचार्य पीके युग के मुताबिक व्रती संतान की खातिर मड़ुआ रोटी व नोनी साग का सेवन करती हैं।