झारखंड : जनजातीय भाषाओं में भी पहली से तीसरी के बच्चे करेंगे पढ़ाई
राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में पहली से तीसरी तक के छात्र-छात्राओं के लिए फंडामेंटल लिटरेसी और न्यूमेरेसी (एफएलएन) कार्यक्रम चल रहा है। इसमें भाषा और गणित विषय पर विशेष रूप से जोर दिया गया है।
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झारखंड के सरकारी स्कूलों के बच्चे जनजातीय भाषाओं में भी पढ़ाई करेंगे। पहली से तीसरी क्लास के बच्चे हो, मुंडारी, खड़िया, कुड़ुख और संथाली भाषा में भी पढ़ाई करेंगे। फंडामेंटल लिटरेसी और न्यूमेरेसी (एफएलएन) प्रोग्राम में जनजातीय भाषा को शामिल किया जा रहा है। 2023 के नए शैक्षणिक सत्र से इसकी शुरुआत की जाएगी। स्कूली शिक्षा व साक्षरता विभाग इसकी तैयारी कर रहा है।
राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में पहली से तीसरी तक के छात्र-छात्राओं के लिए फंडामेंटल लिटरेसी और न्यूमेरेसी (एफएलएन) कार्यक्रम चल रहा है। इसमें भाषा और गणित विषय पर विशेष रूप से जोर दिया गया है। अब नए शैक्षणिक सत्र से पांच जनजातीय भाषाओं को इसमें जोड़ा गया है।
हो, मुंडारी, खड़िया, कुड़ुख और संथाली भाषा को इसमें जोड़ा गया है। इस जनजातीय भाषाओं के लिए झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद किताब तैयार कर रही है। 20-25 कहानियों को इसमें शामिल किया जाएगा, जिससे संबंधित क्लास के बच्चों को पढ़ाया जाएगा।
बच्चों की क्षमता का होगा विकास सरकारी स्कूलों के बच्चों की क्षमता के विकास के लिए पहली से तीसरी क्लास में एफएलएन की शुरुआत की गई है। इसमें पाठ्यक्रम के साथ-साथ एफएलएन के माध्यम से बच्चों को भाषा व गणित विषय के जानकारी दी जाती है। अब जनजातीय भाषाओं की कहानियों, चित्र और टेक्स्ट के माध्यम से बच्चों को पढ़ाया जाएगा।
हर स्कूल को मिलेगी 10-10 पुस्तक
- पहली से तीसरी क्लास के बच्चों को पढ़ाने के लिए संबंधित स्कूलों को 10-10 किताबें दी जाएंगी। यह किताब बाइलिंगवल बुक बैंक होगी। इसमें जनजातीय भाषाओं के मेटेरियल समाहित होंगे। बच्चे पिक्चर के माध्यम से और टेक्स्ट के माध्यम से पढ़ना, पहचानना और बोलना सीख सकेंगे। स्कूल में जिस जनजातीय भाषा के बच्चे होंगे, शिक्षक उन्हें उसी भाषा में इसकी जानकारी देंगे। इससे वे आसानी से शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे।
सभी स्कूलों में होनी है मातृभाषा में पढ़ाई
- राज्य के सभी स्कूलों में मातृभाषा में पढ़ाई होनी है। राज्य सरकार पिछले कई वर्षों से इसकी तैयारी कर रही है। इसमें जिस क्षेत्र में जो भाषा बोली जाती है, स्कूल के शिक्षक बच्चों को उसी भाषा में पढ़ाएंगे। मातृभाषा में पढ़ने पर बच्चे आसानी से चीजों को समझते हैं और जल्द सीखते भी हैं। सरकारी स्कूलों में नियुक्त शिक्षकों को स्थानीय भाषा की जानकारी रहती है। उन्हें उसी भाषा में पढ़ाने के लिए प्रेरित भी किया जा रहा है।