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सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी का अवतार हैं मां सीता 

माता सीता सेवा, संयम, त्याग, शालीनता, शांति, निर्भयता, क्षमा की प्रतिमूर्ति हैं। माता सीता को सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। राजा जनक की पुत्री होने के कारण इन्हें जानकी, जनकसुता...

सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी का अवतार हैं मां सीता 
लाइव हिन्दुस्तान टीम ,meerutSat, 06 Mar 2021 01:35 PM
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माता सीता सेवा, संयम, त्याग, शालीनता, शांति, निर्भयता, क्षमा की प्रतिमूर्ति हैं। माता सीता को सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। राजा जनक की पुत्री होने के कारण इन्हें जानकी, जनकसुता भी कहा गया। मिथिला की राजकुमारी होने के कारण वह मैथिली नाम से भी प्रसिद्ध हैं। भूमि में पाए जाने के कारण माता सीता को भूमिपुत्री या भूसुता भी कहा गया।

प्रभु श्रीराम को वनवास मिला लेकिन माता सीता पतिव्रत धर्म निभाने के लिए महलों के सुख, वैभव को छोड़कर उनके साथ चल दीं। 14 वर्ष के वनवास के दौरान माता सीता प्रभु श्रीराम के पीछे-पीछे चलती थीं। वह इस बात का विशेष ध्यान रखती थीं कि भूल से उनका पैर श्रीराम के चरण चिह्नों पर न पड़ जाए। जिस दिन रावण, माता सीता का हरण कर अशोक वाटिका लाया, उसी रात देवराज इंद्र, माता सीता के लिए खीर लेकर आए। देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया और माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से माता सीता की भूख-प्यास शांत हो गई। जब हनुमान जी अशोक वाटिका पहुंचे तो उन्होंने कहा कि मैं अभी आपको लेकर प्रभु श्रीराम के पास चलता हूं लेकिन माता सीता ने कह दिया कि प्रभु श्रीराम ही मुझे मान-मर्यादा के साथ लेकर जाएं, यही उचित होगा। अशोक वाटिका में माता सीता नहीं बल्कि उनकी प्रतिछाया थी। जब तक माता सीता लंका में रहीं तब तक उनका असली स्वरूप अग्निदेव के पास रहा। अग्निपरीक्षा के समय अग्निदेव ने प्रत्यक्ष रूप धारण कर माता सीता को श्रीराम के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए कहा कि वह हर प्रकार से पवित्र हैं।वनवास के समय माता सीता का नाम वैदेही पड़ा। वाल्मीकि आश्रम में माता सीता ने लव-कुश नामक जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। अंत समय माता सीता पृथ्वी में समा गईं। सीता मैया और प्रभु श्रीराम की रक्षा के लिए लक्ष्मण जी 14 वर्ष के वनवास में एक भी दिन नहीं सोए। मेघनाद को वरदान था कि उसकी मृत्यु उसी के हाथों होगी जो 14 वर्षों तक सोया न हो। युद्ध में लक्ष्‍मण ने मेघनाद का वध किया। 

इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।

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