उत्तराखंड के इस मंदिर में भगवान विष्णु और शिव की होती है एकसाथ पूजा, जानें क्या है मान्यता
सोनपुर में गंगा-नारायणी (गंडक) के संगम तट पर कार्तिक पूर्णिमा को स्नान का बहुत ही महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा को हर साल यहां देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं। इस अवसर पर इसी जगह पर एशिया का सबसे...
सोनपुर में गंगा-नारायणी (गंडक) के संगम तट पर कार्तिक पूर्णिमा को स्नान का बहुत ही महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा को हर साल यहां देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं। इस अवसर पर इसी जगह पर एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला भी लगता है। इसी स्थान पर हरिहरनाथ का एक विशाल मंदिर है, जिसमें हरि (विष्णु) और हर (शिव) की एक साथ पूजा होती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अगस्त्य मुनि के शाप से इंद्रद्युम्न नामक एक राजा हाथी बन गया था और देवल मुनि के शाप से हुहु नामक गंधर्व मगरमच्छ। इस मगरमच्छ का निवास इसी संगम के तट पर था। कालांतर में प्यास से व्याकुल गज बना इंद्रद्युम्न एक बार इस तट पर पानी पी रहा था कि अचानक मगरमच्छ बने हुहु गंधर्व ने उस पर हमला कर दिया। वह गज का पैर अपने मुंह में दबा कर उसे गहरे और अथाह पानी में खींचने लगा।
ग्राह यानी मगरमच्छ के हमले से भयभीत गज ने आर्तनाद करते हुए भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से ग्राह का वध कर गज की रक्षा की और दोनों को शाप मुक्त किया। यह युद्ध गज और ग्राह के बीच सोनपुर में गंगा और गंडक के संगम पर हुआ था। शास्त्रों में यह गज-ग्राह युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। भागवत पुराण में इसकी व्याख्या है। गज द्वारा की गई प्रार्थना को आज भी गजेंद्र मोक्ष के नाम से पढ़ा जाता है। हरिहर क्षेत्र मेला का यह स्थान सोनपुर मेला, छत्तर मेला और कोनहरा घाट मेला के नाम से भी प्रसिद्ध है।
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, जय और विजय दो भाई थे। जय शिव का तथा विजय विष्णु का भक्त था। दोनों में अकसर इस बात को लेकर विवाद होता था। कालांतर में संतों की मध्यस्थता से दोनों में मित्रता हो गई और दोनों भाइयों ने वहां शिव और विष्णु दोनों का मंदिर साथ-साथ बनाया, जिससे इसका नाम हरिहरक्षेत्र पड़ा। उसी स्मृति में यहां कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मेला आयोजित किया जाता है।
बाबा हरिहरनाथ पुस्तक के लेखक उदय प्रताप सिंह के अनुसार, 1757 के पहले हरिहरनाथ मंदिर इमारती लकड़ियों और काले पत्थरों के कलात्मक शिला खंडों से बना था। इन पर हरि और हर के चित्र और स्तुतियां उकेरी गई थीं। उस दरम्यान इस मंदिर का पुनर्निर्माण मीर कासिम के नायब सूबेदार राजा रामनारायण सिंह ने कराया था। इसके बाद 1860 में टेकारी की महारानी ने मंदिर परिसर में एक धर्मशाला का निर्माण कराया।
1871 में मंदिर परिसर के शेष तीन बरामदों का निर्माण नेपाल के महाराणा जंगबहादुर ने कराया था। 1934 के भूकंप में मंदिर परिसर का भवन, बरामदा तथा परकोटा क्षतिग्रस्त हो गए। इसके बाद बिड़ला परिवार ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1871 में अंग्रेज लेखक मिंडेन विल्सन ने सोनपुर मेले का वर्णन अपनी डायरी में किया है। देश के चार धर्म महाक्षेत्रों में से एक हरिहरक्षेत्र है। मान्यता है कि इस संगम धारा में स्नान करने से हजारों वर्ष के पाप कट जाते हैं।
कैसे पहुंचें: हरिहरनाथ मंदिर बिहार की राजधानी पटना से 25 किलोमीटर और वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर से 5 किलोमीटर की दूरी पर है। दोनों जगहों से यहां के लिए बस और टैक्सी उपलब्ध हैं। यहां पटना के किसी भी घाट से जल-मार्ग द्वारा भी आसानी से पहुंचा जा सकता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन हाजीपुर और सोनपुर हैं। पटना हवाई अड्डा से हरिहरनाथ मंदिर की दूरी 25 किलोमीटर है।