जकात से करें गरीबों की मदद
कमाई का एक हिस्सा सदके (दान) में जरूर देना चाहिए। जरूरतमंदों की मदद करने से उनकी दुआ मिलती हैं। माह-ए-रमजान में जकात देने का सिलसिला शुरू हो जाता है, जिसे ईद की खुशियां मनाने से पहले अदा किया जाता...
कमाई का एक हिस्सा सदके (दान) में जरूर देना चाहिए। जरूरतमंदों की मदद करने से उनकी दुआ मिलती हैं। माह-ए-रमजान में जकात देने का सिलसिला शुरू हो जाता है, जिसे ईद की खुशियां मनाने से पहले अदा किया जाता है। जकात इस्लाम के बुनियादी फर्जों में से एक है।
शरीयत के मुताबिक जकात उस पर फर्ज होती है जो साहिब-ए-निसाब हो। यानि व्यक्ति के पास यदि 87 ग्राम सोना अथवा 612 ग्राम चांदी या सोना-चांदी दोनों को मिलाकर किसी एक (87 ग्राम सोना अथवा 612 चांदी) के बराबर संपत्ति है तो जकात फर्ज होती है। जकात एक तरह का दान है, बस इसको देने और लेने का तरीका, इस्तेमाल करने के कायदे, देने-लेने का वक्त और कितना दिया जाए यह तय है। कुरआन में जकात का जिक्र कुछ इस तरह है कि आपकी आय के ढाई प्रतिशत पर गरीबों का भी हक है। जकात से होने वाली आमद से मुफलिसों की मदद होती है। मदरसों के इंतजाम किए जाते हैं। बेसहारा और वेबा औरतों की मदद की शक्ल में इसका इस्तेमाल होता है।
इन्हें दे सकते हैं जकात
घर के लोगों में यदि सगा भाई, बहन, चाचा, ताऊ, खालू, मामा, भांजा, भांजी आदि। यदि वह गरीब हैं तो जकात का पैसा उन्हें दिया जा सकता है।
इन्हें नहीं दे सकते जकात
जकात का पैसा मां-बाप, नाना-नानी, दादा-दादी, औलाद, पोते-पोती, नवासे-नवासी आदि को नहीं दे सकते।
यह भी कर सकते हैं
- गरीब लड़कियों की शादी में मदद
- बेसहारा बेवा औरतों को मदद
- गरीब गर्भवती महिलाओं की मदद
- गरीब मरीजों को इलाज के लिए मदद
- गरीब बच्चों को स्कूल फीस अदा की जाती है।
- मोहल्ले-पड़ोस के गरीब लोगों की जरूरत पूरी कर सकते हैं।