Hanuman jayanti 2019: बुढाना गेट का सिद्धपीठ श्री हनुमान मंदिर, यहा हैं बाबा की स्वयंभू प्रतिमा
शहर के बीचों-बीच स्थित सिद्धपीठ श्री हनुमान मंदिर, बुढाना गेट श्रद्धा, आस्था एवं भक्ति का संगम है। करीब 200 साल पुराने इस मंदिर में अनेक लोग तो ऐसे हैं जो पीढ़ियों से बाबा के दर्शन कर अपने प्रतिष्ठान...
शहर के बीचों-बीच स्थित सिद्धपीठ श्री हनुमान मंदिर, बुढाना गेट श्रद्धा, आस्था एवं भक्ति का संगम है। करीब 200 साल पुराने इस मंदिर में अनेक लोग तो ऐसे हैं जो पीढ़ियों से बाबा के दर्शन कर अपने प्रतिष्ठान खोलते हैं। मंदिर के प्रबंधक अनिल पाठक बताते हैं कि हनुमान मंदिर लगभग 15 फुट ऊंचे स्थान पर स्थित था तथा पंडित शिवधन हरी व उनके भाई जो बाल ब्रह्मचारी थे उनका अखाड़ा हुआ करता था। मंदिर में बाबा की स्वयंभू प्रतिमा है।
हनुमान जन्मोत्सव की पूर्व संध्या पर शहर में श्रद्धा और भक्ति के वेग में श्रद्धालु बहने लगे। हनुमान मंदिरों में विशेष रूप से साज-सज्जा कर बाबा का शृंगार किया गया। सुबह से मंदिरों में बाबा के दर्शन को लोग उमड़े। शाम को सुंदरकांड पाठ में हुई भक्तिवर्षा में लोग अभिभूत हो गए।
कृष्णा पाठक के पति अनिल पाठक और उनके तीनों पुत्र डॉ. गौरव पाठक, वैभव पाठक व अविनव पाठक इस मंदिर का संचालन एवं देखभाल कर रहे हैं। गौरव पाठक बताते हैं कि 2015 में मंदिर में प्रथम तल पर शुद्ध चांदी से बने श्री राधा-कृष्ण जी के विग्रह स्थापित कराए गए। इसके लिए बनवारी भवन का निर्माण कराया गया। उन्होंने दावा किया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहली चांदी से बनी मूर्तियों एवं आधुनिक मंदिर का गौरव मंदिर को है।
जन्मोत्सव पर उमड़ता है सैलाब.
मंदिर के पुजारी एचके पाठक कहते हैं कि शनिवार और मंगलवार को बाबा की विशेष आराधना होती है। उन्होंने बताया कि चालीस दिन तक बाबा के दर्शन कर दीपक जलाने से मनोकामना पूर्ति के योग बनते हैं। मंदिर में पूजा अर्चना, कर्म कांड व भंडारे हेतु अलग अलग स्थान उपलब्ध हैं। समय-समय पर भजन कीर्तन भंडारों आदि धार्मिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। हनुमान जन्मोत्सव पर श्रद्धा का सैलाब उमड़ता है।
अनिल पाठक बताते हैं कि लगभग 70 वर्ष तक बनवारी लाल शर्मा ने इस मंदिर की सेवा की। सन 1985 में अपने पुत्र के जीवित न होने के कारण उत्तराधिकारी के रूप उन्होंने अपनी पुत्री कृष्णा पाठक को विधिक रूप से नियुक्त किया। 1986 में बनवारी लाल शर्मा की मृत्यु उपरांत उनकी पुत्री कृष्णा पाठक ने यहां का कार्यभार संभाला। उनके पति और उन्होंने मिलकर यहां इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार कर आज के भव्य रूप के प्रदान करने लिए लगभग 30 वर्ष सेवा दी। स्त्री होते हुए उन्हें बाबा की स्तुति कर अपना आराध्य माना। उनके हृदय में बजरंग बली के प्रति बचपन से ही विशेष अनुराग था।
अनिल पाठक बताते हैं कि बुढ़ाना गेट से बुढ़ाना के लिए बुग्गी व तांगे चला करते थे। इसलिए यहां यात्रियों के विश्राम के लिए कोठरी व पीपल और दो कुएं हुआ करते थे। यात्री यहां रुककर बाबा के दर्शन कर मंगलयात्रा की कामना करते हुए सफर करते थे। बाद में अपने भांजे पंडित बनवारी लाल शर्मा को 1930-32 में मंदिर का संचालन उन्हें सौंप दिया।