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Gupt Navratri 2018: गुप्त नवरात्रि की पांचवी महाविद्या हैं छिन्नमस्ता

अपने जीवन में प्राणी दो-तीन चीजों से परेशान रहता है। वह अहम् को पालता है। इंद्रियों पर उसका नियंत्रण नहीं रहता। आत्म निरीक्षण नहीं करता। आत्म नियंत्रण नहीं होता। यही सभी अवगुण जब एकाकार होते हैं जो...

Gupt Navratri 2018: गुप्त नवरात्रि की पांचवी महाविद्या हैं छिन्नमस्ता
सूर्यकांत द्विवेदीTue, 17 Jul 2018 01:04 PM
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अपने जीवन में प्राणी दो-तीन चीजों से परेशान रहता है। वह अहम् को पालता है। इंद्रियों पर उसका नियंत्रण नहीं रहता। आत्म निरीक्षण नहीं करता। आत्म नियंत्रण नहीं होता। यही सभी अवगुण जब एकाकार होते हैं जो एक ऐसे प्राणी का निर्माण होता है जिसे कोई भी अच्छा नहीं मानता। देवी का अर्थ चूंकि प्रकाश है, इसलिए गुप्त नवरात्रि की पांचवी शक्ति सबसे अलग और शाश्वत संदेश लेकर आती हैं।

 

गुप्त नवरात्रि की पांचवी महाविद्या का नाम है- छिन्नमस्ता। तांत्रिक और भयंकारी स्वरूप के कारण इन शक्ति की पूजा गृहस्थ नहीं करते हैं। यह स्वरूप देवी का प्रलंयकारी है। लेकिन देवी कहती हैं कि मृत्यु सभी की निश्चित है। जो आया है, उसका अंत तय है। देवी का यह स्वरूप प्राणी को अहं को मारने के लिए प्रेरित करता है। जिसके अंदर भी मैं है, देवी उस मैं का अंत करती हैं। मैं का स्थान मस्तक है। मस्तिष्क है। इंसान सोचता है कि सबका भले ही अंत हो जाये, उसका अंत तो हो ही नहीं सकता। वह अपने कार्य को सर्वश्रेष्ठ मानता है। अपने मैं में खोया रहता है। देवी इस अहंकार को चूर करती हैं। छिन्नमस्ता देवी सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनका यह स्वरूप प्रचंड डरावनी, भयंकर और उग्र है। इसी तरह का स्वरूप चंडिका देवी का भी है। अंतर केवल इतना है कि चंडिका देवी की पूजा गृहस्थों के लिए वर्जित नहीं है जबकि छिन्नमस्ता की कठिन साधना होने के कारण गृहस्थों को करने के लिए नहीं कहा जाता है। 


आत्म नियंत्रण की देवी हैं छिन्नमस्ता
छिन्नमस्ता दो शब्दों से बना हैं: छिन्न और मस्ता अर्थात जिनका मस्तक देह से पृथक हैं वह छिन्नमस्ता कहलाती हैं। देवी अपने मस्तक को अपने ही हाथों से काट कर, अपने हाथों में धारण करती हैं तथा प्रचंड चंडिका जैसे नामों से जानी जाती हैं। वह दश महाविद्याओं में पांचवे स्थान पर हैं। समस्त देवी-देवताओं से देवी का यह स्वरूप सबसे पृथक है। उनके इस स्वरूप को देखकर असुर भयभीत होते हैं। देवी ब्रह्मांड को परिवर्तित करती हैंऔर उसको चलायमान करती हैं। वह सृजन और विनाश के रूप में हैं। देवी परम सत्य की ओर संकेत देती है। परम सत्य क्या है? निश्चित ही मृत्यु ही जीवन और परम सत्य है। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। देवी छिन्नमस्ता की पूजा करने वाले को मृत्यु का भय नहीं रहता। उसकी समस्त इंद्रियां और कामेंद्रियां नियंत्रित रहती हैं। वासना यानी काम पर विजय पाने के लिए भी छिन्नमस्ता की आराधना श्रेष्ठ है। इनकी पूजा से आत्म नियंत्रण बढ़ता है। अनुचित इच्छाओं का दमन होता है। समस्त प्रकार के अहंकार को छिन्न-छिन्न करती हैं देवी छिन्नमस्ता। उत्पत्ति या वृद्धि होने पर देवी भुवनेश्वरी का प्रादुर्भाव होता हैं तथा विनाश या ह्रास होने पर देवी छिन्नमस्ता का प्रादुर्भाव माना जाता हैं। उनका स्थान मणिपुर चक्र में है।
 
कौन हैं देवी छिन्नमस्ता
·   नाम- छिन्नमस्ता, छिन्न-मुंडा, छिन्न-मुंडधरा, आरक्ता, रक्त-नयना, वज्र-वराही
·   भैरव- क्रोध भैरव
·   भगवान नृसिंह अवतार
·   कुल- काली
·   दिशा-उत्तरा
·   संदेश- अवगुणों का छेदन, आत्म नियंत्रण, मृत्यु शाश्वत

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