गुप्त नवरात्रि 2018: श्मशान में वास करती हैं दूसरी महाविद्या मां तारा, ऐसे करें इनकी पूजा
मां के दूध से बढ़कर कोई अमृत नहीं है। यह तमाम औषधियों से बढ़कर है। स्तनपान को इसलिए श्रेष्ठ कहा गया है क्यों कि उसमें समस्त पौष्टिक तत्व होते हैं। यह मातृ शक्ति है और इसकी अधिष्ठात्री देवी हैं...
मां के दूध से बढ़कर कोई अमृत नहीं है। यह तमाम औषधियों से बढ़कर है। स्तनपान को इसलिए श्रेष्ठ कहा गया है क्यों कि उसमें समस्त पौष्टिक तत्व होते हैं। यह मातृ शक्ति है और इसकी अधिष्ठात्री देवी हैं तारा। कोई सोच सकता है कि भगवान शंकर को भी देवी ने अमृतमयी दूध का स्तनपान कराया। कथा आती है कि जब समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने गरल पी लिया तो उनको शारीरिक कष्ट हुए। गरल की जलन अधिक थी। तब मां काली के दूसरे स्वरूप तारा देवी ने स्तनपान कराकर भगवान शंकर के गरल की ज्वाला को शांत किया।
तारा देवी
गुप्त नवरात्र की दूसरी अधिष्ठात्री हैं तारा देवी। यह काली जी का ही रूप हैं। श्मशान में वास करती हैं। नर-मुंड की माला पहनती हैं जैसे काली जी पहनती हैं। यह तंत्र शास्त्र की देवी हैं। इनकी आराधना से सारे कष्ट मिट जाते हैं। इनकी आराधना कठिन है लेकिन उनके लिए जो तंत्र शास्त्र में विश्वास करते हैं। गृहस्थ आश्रम में रहने वालों के लिए देवी तारा अमृतमयी दुग्ध प्रदान करने वाली आद्या शक्ति हैं। वस्तुत: तारा देवी, स्त्री के दुग्ध की शक्ति स्वरूप में हैं। यानी उसकी शक्ति हैं। वह संदेश भी यही देती हैं कि जो शक्ति मां के दूध में हैं, वह किसी में नहीं हैं। भगवान शंकर कल्याण के देव हैं। शिव हैं। गरल पीना यानी संसार की समस्त विषमताओं को पी जाना और जब कहीं से ज्वाला शांत न हो तो मां का स्तनपान करना। जिस प्रकार मां का स्तनपान करके बच्चे की भूख शांत हो जाती है, वह कितना ही रो रहा हो लेकिन मां का दूध प्राप्त होते ही चुप हो जाता है, उसी प्रकार सांसारिक मां भी है। वह आद्या शक्ति हो या सांसारिक, उसके दूध में वही शक्ति है। वही चेतना है। वही ऊर्जा है। वह बच्चे को स्तनपान कराकर अमृत प्रदान करती है और इसी अमृत को प्रदान करती हैं देवी तारा।
महर्षि वशिष्ठ ने की थी आराधना
तारा एक तारा भी है। तारा यानी तारने वाली। कष्ट हरने वाली। माना जाता है कि महर्षि वशिष्ठ ने तारा देवी की आराधना की थी। तारा देवी के तीन स्वरूप हैं- तारा, एकजुटा और नील सरस्वती। वह ऐश्वर्य, आर्थिक उन्नति, भोग और मोक्ष की देवी हैं। दक्ष प्रजापति की दूसरी पुत्री कही जाती हैं देवी तारा।
कब होती है पूजा
चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा रूपी देवी की साधना करना र्सिद्धिकारक माना गया है। गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन इनके नाम है। जो भी साधक या भक्त माता की मन से प्रार्धना करता है उसकी कैसी भी मनोकामना हो वह तत्काल ही पूर्ण हो जाती है।
मंत्र
नीले कांच की माला से बारह माला प्रतिदिन 'ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुम फट' मंत्र का जाप कर सकते हैं। यह माला उपलब्ध न हो तो रुद्राक्ष की माला से कर सकते हैं।
पूजन सामग्री
देवी भगवती को अनार का भोग लगता है। लाल पुष्प चढ़ते हैं। खासकर लाल गुलाब। पूजा पाठ के लिए आसन भी लाल ही होना चाहिए। साधकों को तांत्रिक से अधिक मात़ृ शक्ति के रूप में इनकी आराधना करनी चाहिए।
पूजा का समय: रात्रि दस बजे से