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लालच है पाप का गुरु

एक बार एक पंडित जी शास्त्रों के अध्यनन के लिए काशी गए सभी शास्त्रों का सांगोपांग अध्ययन करने के बाद पंडित जी अपने गांव लौटे। पंडित जी के आने की खुशी में उत्सव आयोजित हुआ,  जिसमें ज्ञान चर्चा का...

लालच है पाप का गुरु
लाइव हिन्दुस्तान टीम,मेरठ Fri, 09 Mar 2018 02:01 AM
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एक बार एक पंडित जी शास्त्रों के अध्यनन के लिए काशी गए सभी शास्त्रों का सांगोपांग अध्ययन करने के बाद पंडित जी अपने गांव लौटे। पंडित जी के आने की खुशी में उत्सव आयोजित हुआ,  जिसमें ज्ञान चर्चा का विषय भी रखा गया। सभी लोगों ने तरह-तरह के प्रश्न पूछे, लगभग सभी प्रश्नों के जवाब पंडित जी ने शास्त्रीय व्याख्याओं से दिए।

इसी दौरान एक बूढ़ा किसान आया और उसने पूछा कि पंडित ये बताएं कि पाप का गुरु कौन? पंडित जी ने अपना दिमाग खूब दौड़ाया लेकिन इसका जवाब उन्हें कहीं नहीं मिला। अंत में पंडित को लगा कि अभी उनका ज्ञान अधुरा है, वे उसी क्षण काशी के लिए रवाना हो गए।
पंडित जी अपने गुरु के पास गए और प्रश्न पूछा, तो उन्होंने कहा- इसका जवाब तो एक पापी ही दे सकता है कि उसका गुरु कौन? पंडित जी की आखें आशा से चमक उठी, उन्होंने पूछा- ऐसा पापी कौन है और कहां मिलेगा?

पंडित जी के गुरु बोले, मैं तो किसी पापी को नहीं जानता लेकिन एक वेश्या है जिसने सैकड़ों लोगों को पापी बनाया है, वह तुम्हारे इस प्रश्न का जवाब दे सकती है। पंडित जी बिना कोई देर किए वेश्या के घर की ओर चल दिए। पंडित जी को आता देख वेश्या ने स्वागत किया और आने का कारण पूछा।

पंडित जी ने स्वाभिमान पूर्वक कहा- उन्हें अपने एक प्रश्न का उत्तर चाहिए और उसका उत्तर केवल तुम दे सकती हो, इसलिए तुम्हारे पास आना पड़ा। मुस्कुराते हुए वेश्या बोली, ऐसा कौनसा प्रश्न है, जिसका जवाब केवल मैं ही दे सकती हूं। पंडित जी बोले, मैं जानना चाहता हूं कि पाप का गुरु कौन है। वैश्या ठहाका लगाकर हंसी और फिर गंभीर होकर बोली- महाशय! इसके लिए आपको कुछ दिन यहां रहना पड़ेगा। अब पंडित जी इस प्रश्न के उत्तर में पहले ही काफी भटक चुके थे, इसलिए उन्होंने वेश्या की बात मानकर वहां रहना स्वीकार कर लिया।

पंडित जी बोले- देवी! मैं यहां रह तो लूंगा लेकिन खाना अपने खुद के हाथ का बनाया करूंगा। वेश्या ने पंडित जी की बात मान ली। एक दो दिन निकलने के बाद एक दिन वेश्या बोली- पंडित जी, आप अकेले खाना बनाते हैं कितने परेशान हो जाते हैं, एक काम कीजिए, कल से नहा-धोकर आपके लिए खाना मैं बना दिया करूंगी। इससे मुझे भी आपकी सेवा का कुछ पूण्य मिल जाएगा और भोजन के साथ दक्षिणा में मैं आपको एक सोने की मुहर दूंगी।

मुफ्त का खाना और साथ में सोने की मुहर का विचार कर पंडित जी ने वेश्या का प्रस्ताव मान लिया । दुसरे ही दिन वेश्या ने तरह-तरह के पकवान बनाए और पंडित जी की सेवा में उपस्थित हुई। भोजन का थाल पंडित जी के सामने परोसा गया लेकिन जैसे ही पंडित जी ने खाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, वेश्या ने थाल पीछे खींच लिया। वेश्या के इस व्यवहार से पंडित जी कोधित हो गए और तिलमिलाकर बोले- ये क्या मजाक है? वेश्या ने विनम्रता पूर्वक कहा कि श्रीमान! यही आपके प्रश्न का उत्तर है।

वेश्या ने समझाते हुए कहा, पंडित जी क्या केवल स्नान कर लेने मात्र से कोई पवित्र हो जाता है, क्या मेरी अपवित्रता केवल इतनी ही है जो केवल स्नान करके मिटाई जा सकती है? नहीं! लेकिन मुफ्त के भोजन और स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आप अपने वर्षों के नियम को समाप्त करने के लिए तैयार हो गए। यह लोभ ही पाप का गुरु है।

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