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निस्वार्थ भाव से कुछ देना, हमें प्रभु के और करीब ले जाता है

Selflessness: असल में निस्वार्थ भाव से किसी को कुछ देने से बढ़कर कोई खुशी नहीं है। यह खुशी हमें असीम सुख से भर देती है। निस्वार्थ भाव से किसी को कुछ देने वाला कभी नहीं खोता। बिना मांगे अधिक-से-अधिक

निस्वार्थ भाव से कुछ देना, हमें प्रभु के और करीब ले जाता है
Anuradha Pandeyसंत राजिंदर सिंह,नई दिल्लीTue, 31 Oct 2023 09:10 AM
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एक इनसान जो सबसे बड़ा काम कर सकता है, वह है दूसरों की सेवा करना। दूसरों को कुछ देना। लेकिन बहुत-से लोग देने से डरते हैं क्योंकि उन्हें चिंता होती है कि उनके पास कम हो जाएगा। उन्हें इस बात का अहसास नहीं है कि ब्रह्मांड में बहुतायत का नियम काम कर रहा है। जब भी हम निस्वार्थ भाव से किसी को कुछ देते हैं या किसी की मदद करते हैं तो हमें और अधिक मिलता है।

इसे समझने के लिए एक किस्सा है। अरब देश में एक बुजुर्ग आदमी था। उसके तीन लड़के थे। जब वह मरने के करीब था, तो उसने अपने बेटों को अपने पास बुलाया और उनसे कहा, ‘जब मैं मर जाऊं तो मेरी संपत्ति आपस में बांट लेना।’ उसने अपने बड़े बेटे को कहा कि तुम मेरी संपत्ति का आधा हिस्सा ले लेना। मंझले बेटे को कहा कि एक तिहाई संपत्ति तुम्हारी है। और सबसे छोटे बेटे से कहा कि तुम्हारे पास मेरी संपत्ति का नौवां हिस्सा होगा।

इसके कुछ दिनों बाद बुजुर्ग की मौत हो गई। जब उसकी संपत्ति का लेखा-जोखा किया गया, तो पता चला कि उसके पास कुल सत्रह ऊंट थे। उन्हें ठीक उसी तरह बांटना असंभव था, जैसा उनके पिता ने कहा था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। वे सलाह के लिए अपने पिता के एक बुजुर्ग मित्र के पास गए। बुजुर्ग ने कुछ देर सोचा और कहा, ‘मेरे पास केवल एक ऊंट है। यदि मैं उस ऊंट को तुम्हारे झुंड में मिला दूं, तो तुम अपने पिता की इच्छा के अनुसार ऊंटों को बांट सकते हो।

जब उसने अपने ऊंट को सत्रह में जोड़ा, तो अठारह ऊंट हो गए। इन्हें लड़कों के पिता की इच्छानुसार आसानी से बांटा जा सकता था। सबसे बड़े को उसने आधा हिस्सा दिया, जो नौ ऊंट निकले। मंझले बेटे को एक तिहाई हिस्सा दिया, जो छह ऊंट निकले। सबसे छोटे को उसने अठारह में से नौवां भाग दिया, जो दो ऊंट निकले। लड़के खुशी-खुशी चले गए। बुजुर्ग मित्र ने पलट कर देखा तो उसे अहसास हुआ कि उसके पास उसका अपना ऊंट ही रह गया! उसने परमेश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा, ‘हे परमेश्वर, तेरी कृपा से बढ़कर कुछ नहीं है! यह किस्सा हमें बताता है कि जब हम देते हैं तो हम कभी नहीं हारते। बुजुर्ग व्यक्ति इतना निस्वार्थ था कि वह अपने दोस्त की इज्जत के लिए अपनी एकमात्र संपत्ति देने को तैयार हो गया। इसके बावजूद उसने अपना ऊंट नहीं खोया।

अकसर ऐसा होता है कि जब हम किसी जरूरतमंद को कुछ देते हैं तो वह चीज या तो हमें वापस मिल जाती है या परिस्थितियां बदल जाती हैं और हमें उसे देने की जरूरत नहीं पड़ती। इसकी वजह है कि जब भी हम निस्वार्थ भाव से किसी की मदद करते हैं तो ईश्वर हमारी मदद करता है। असल में निस्वार्थ भाव से किसी को कुछ देने से बढ़कर कोई खुशी नहीं है। यह खुशी हमें असीम सुख से भर देती है। निस्वार्थ भाव से किसी को कुछ देने वाला कभी नहीं खोता। हम देखते हैं कि बिना मांगे अधिक-से-अधिक आशीर्वाद हम पर बरस रहा है। हम ईश्वर के और करीब होते जाते हैं।

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