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त्रिवेणी में माघ महीने में किया गया गौ दान अक्षय फलदायी

अमृत से सिंचित और ब्रह्मदेव के यज्ञ से पवित्र  तीर्थराज प्रयाग में आस्था और विश्वास के माघ मेला में  त्रिविध ताप-पाप  नाशिनी गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी तट पर किया गया गौ दान...

त्रिवेणी में माघ महीने में किया गया गौ दान अक्षय फलदायी
एजेंसी,प्रयागराजMon, 15 Feb 2021 04:33 PM
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अमृत से सिंचित और ब्रह्मदेव के यज्ञ से पवित्र  तीर्थराज प्रयाग में आस्था और विश्वास के माघ मेला में  त्रिविध ताप-पाप  नाशिनी गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी तट पर किया गया गौ दान अक्षय  फलदायी माना गया है। तीर्थराज प्रयाग के माघ महीने में स्नान और दान का विशेष महत्व है। जब इस धरा पर कुंभ, अर्ध कुंभ और माघ का महीना हो  तो दान का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। राजा हर्षवर्धन के काल में यहां पर 84 प्रकार के दान की बात कही जाती है, जिसके 84 योनियों से मुक्ति की कामना  जुड़ी हुई थी।

प्रयाग में आस्था की डुबकी का जितना बड़ा महात्म  है उससे कही बड़ी दान की महत्ता है। सब तरह के कल्याण के लिए गौ दान उपयोगी  है। दान या परोपकार एक ऐसा कर्म है जिसका महत्व सभी धमोर्ं में समान रूप  से स्वीकार किया गया है। पौराणिक आख्यानों में और किंवदंतियों में बताया  गया है कि तीर्थराज प्रयाग में गंगा, यमुना और पौरणिक सरस्वती की त्रिवेणी  में माघ मास में स्नान करने के बाद ही देवराज इन्द्र को गौतम ऋषि के श्राप  से मुक्ति मिली थी। 

 ऋग्वेद के अनुसार जो जातक गाय का दान करता  है, उसे स्वर्ग में उच्च स्थान मिलता है। प्रयाग माहात्म्य में कहा गया है  कि जो श्रेष्ठ विमान पर चढ़कर दिव्य अलंकारों से विभूषित होकर स्वर्ग जाना  चाहे उसे गोदान करना चाहिए। यह दान दैहिक, दैविक और भौतिक पापों को नष्ट  करता है। यह दान देने वाले को वैकुण्ठ ले जाता है तथा उसके पितरों को मोक्ष  दिलाने वाला बताया गया है।धर्म ग्रंथों में त्रेता, सतयुग में भी गौ की महिमा का जिक्र मिलता है।  कृष्ण भगवान ने द्वारपर में गौ की सेवा कर उसकी महिमा को महिमामंंडित कर  दिया। उन्होंने बताया कि यह हिंदू धर्म में यह माना जाता है देह त्यागने के  उपरांत जीव को अपने कमोर्ं के अनुसार दंड भुगतना पड़ता है।  गोदान करने से  जीव को वैतरणी पार करते समय कष्ट नहीं होता है। गौ माता जीव को वैतरणी पार  लगाती हैं। इसके अलावा पूर्वर्जों का भी उद्धार करती हैं।

 मान्यता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगम तट पर माघ महीने में  किया गया दान कई जन्मों के पापों का शमन कर अक्षय पुण्य प्रदान करता है।  सतयुग में तपस्या, त्रेतायुग में ज्ञान, द्वापर में पूजन को और कलियुग में  दान को उत्तम माना गया है परन्तु माघ का स्नान सभी युगों में श्रेष्ठ है।  

उन्होंने बताया कि त्रिवेणी स्नान के पश्चात तिल, तिल के लड्डू, तिल का  तेल, आंवला, वस्त्र, अंजन, दर्पण, स्वर्ण तथा दूध देने वाली गौ आदि का दान  किया जाता है। स्वयं जाकर दिया हुआ दान उत्तम एवं घर बुलाकर दिया हुआ दान  मध्यम फलदायी होता है। जब गौ ब्राम्हणों तथा रोगियों को कुछ दिया जाता हो,  उस समय यदि कोई व्यक्ति उसे न देने की सलाह देता हो तो वह दु:ख भोगता है।  अन्न, जल, घोड़ा, गायए,वस्त्र, शय्या, छत्र और आसन इन आठ वस्तुओं का दान मृत्योपरांत के कष्टों को नष्ट करता है।

गौ दान का भारत में प्राचीन  समय से ही अत्यधिक महत्व रहा है। शास्त्रों में महादान का दजार् दिया गया  है। प्राचीन काल से ही राजाओं एवं अन्य व्यक्तियों द्वारा ब्राह्मणों  आदि को गौ दान किया जाता रहा है। पुराणों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि  पुण्य की प्राप्ति के लिए जीवन में कम से कम एक बार गौ दान आवश्य करना चाहिए।

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