गंगा दशहरा 2018: गंगा-दर्शन से ही मिल जाती है मुक्ति
विष्णु पुराण में कहा गया है कि गंगा का नाम लेने, सुनने, उसे देखने, उसका जल ग्रहण करने, छूने और उसमें स्नान करने से मनुष्य के जन्मों-जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं। भगवान कृष्ण ने स्वयं को नदियों...
विष्णु पुराण में कहा गया है कि गंगा का नाम लेने, सुनने, उसे देखने, उसका जल ग्रहण करने, छूने और उसमें स्नान करने से मनुष्य के जन्मों-जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं। भगवान कृष्ण ने स्वयं को नदियों में गंगा कहा है। ‘गम् गम् गच्छति इति गंगा' अर्थात गम गम स्वर करती बहती है गंगा। ‘गंगा तव दर्शनात मुक्ति:' अर्थात गंगा का दर्शन मात्र ही मोक्ष देने वाला है। गंगा हमारे पुरखों को तारती हैं। गंगा हैं कलियुग की प्रधान तीर्थ। ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस बार यह 24 मई को है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को संवत्सर का मुख भी कहा गया है। इस वर्ष इसकी महिमा इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि पुरुषोत्तम (मलमास) माह भी चल रहा है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य की वृष और चंद्रमा की कन्या राशि में गंगा का हिमालय से निर्गमन हुआ था। वैदिक एवं पौराणिक ग्रंथों- श्रीमद्भागवत, महाभारत आदि में इसका विस्तार से वर्णन है।
वामन अवतार में ब्रह्मा ने अपने लोक में नारायण के पैर धोए थे, जिससे गंगा का जन्म हुआ। भगवान राम के वंश में पैदा हुए भगीरथ ने पूर्वजों को तारने के लिए आराधना की तो ब्रह्मा ने गंगा को पृथ्वी पर जाने को कहा। तब गंगा ने कहा- ‘मेरा वेग कौन थामेगा?' तो फिर भगीरथ ने शिव की आराधना की। तब शिवजी ने अपनी जटाओं में गंगा को धारण किया। फिर गंगा भगीरथ के साथ सनातन धर्म के पांचवें धाम गंगासागर स्थित कपिल मुनि के आश्रम पहुंचीं और भगीरथ के पितरों को स्वर्ग प्रदान किया। बीच में गंगा को एक मुनि जाहुन ने कुपित होकर पी लिया था, जिससे उनका नाम जाह्नवी भी है। महाभारत में लिखा है कि रोज गंगाजल पीने वाले मनुष्य के पुण्य की गणना नहीं हो सकती। हमारे घरों में गंगाजल हमेशा रखा रहता है, जिसका उपयोग पूजा आदि कामों के लिए होता है।
स्कंदपुराण के अनुसार गंगा दशहरा पर गंगा नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए। गंगा स्तोत्र जरूर पढ़ना चाहिए। इससे दस तरह के पाप नष्ट होते हैं। हां, गंगा की पूजा में सभी वस्तुएं दस प्रकार की होनी चाहिए, जैसे दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार का नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल आदि होने चाहिए। छाता, सूती वस्त्र, टोपी-अंगोछा, जूते-चप्पल आदि दान में जरूर देने चाहिए। अगर आप गंगा नदी पर नहीं जा सकते, तब घर के पास किसी नदी या तालाब में गंगा मैया का ध्यान करते हुए यह मंत्र पढ़ें और स्नान करें- ‘गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥'.