माता-पिता की भक्ति से बने गणपति अग्रणी देव
आज चारोंं ओर गणेश चतुर्थी की धूम है। गणपति हमारे प्रथम आराध्य हैंं। अग्रणी देव। यह पदवी उनको कैसे मिली? आइये, जानते हैं। माता-पिता की सेवा से ही गणपति देवोंं के देव और अग्रणी देव बने। बहुत...
आज चारोंं ओर गणेश चतुर्थी की धूम है। गणपति हमारे प्रथम आराध्य हैंं। अग्रणी देव। यह पदवी उनको कैसे मिली? आइये, जानते हैं।
माता-पिता की सेवा से ही गणपति देवोंं के देव और अग्रणी देव बने। बहुत कुछ गणेश जी के वृतांत से समझा जा सकता है। वह भगवान शंकर और पार्वती के मानस-पुत्र थे। माता-पिता को ही तीर्थ मानते थे। वह मोदकप्रिय हैं। इसलिए बूंदी को ही सर्वश्रेष्ठ प्रसाद कहा गया। दाने-दाने को जोड़कर जो एकाकार लड्डू हो जाए, वही समाज है और वही उसका मंगल प्रसाद। गणेश जी सामाजिक और पारिवारिक समरसता, माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र और बुद्धि और विवेक के देव हैंं। व्यास जी जब महाभारत लिख नहीं पा रहे थे तो गणेश जी ने ही उसको पूरा किया। दिक्कत यह थी कि जिस तेजी से मंत्र मस्तिष्क में आ रहे थे, उस तेजी से हाथ नहीं चल रहे थे। अंत में गणेश जी ने मोर्चा संभाला। यानी इतिहास के पहले आशुलिपिक गणेश जी हैं।
कौन बनेगा अग्रणी देव.? बहस छिड़ गई। कार्तिकेय या गणेश। शंकर जी बोले..दौड़ लगाओ। कार्तिकेय और गणेश जी दौड़े। गणेश जी ने सोचा, वह तो स्थूल हैं। उन्होंने माता-पिता की ही परिक्रमा कर ली। कार्तिकेय लौटे तो शंकर जी ने फैसला सुनाया। जिसने मां-बाप की परिक्रमा कर ली, उसने सारे तीर्थोंं की परिक्रमा कर ली। गणेश जी अग्रणी देव बने।
गणेश चतुर्थी के कुछ संदेश भी हैंं...
1. मां-पिता देवतुल्य हैं। इनकी सेवा करो। सारे तीर्थ यही हैं।
2. प्रसूत पुत्र ही सदा महान नहीं होता, मानस पुत्र भी महान होता है
3. कर्म महान होने चाहिएं।
4. समरसता और पारिवारिक एकता में ही आनंद है( इसलिए शिव परिवार सर्वश्रेष्ठ है क्यो कि उसमें विद्या, बुद्धि,विवेक, श्री, शक्ति, सत्य, शिव, सुंदर और कल्याण निहित है)
5. हर कार्य का शुभारंभ गणेश जी से। इसका अर्थ है, हम उस परमात्मा का स्मरण करते हैं जिसने हमको कार्य सिद्धि की शक्ति, सामर्थ्य और कौशल दिया।
6. गणेश जी वास्तव में हमारी विद्या और बुद्धि को स्तवन है। साथ में विवेक भी। ये तीनों न हो तो सारा धन बेकार।
7. चूहे की तरह कुतरोगे तो अपना ही नाश करोगे। इसलिए, इस पर अंकुश रखने के लिए गणेश जी इस पर सवारी करते हैं। यही जीवन का संदेश भी है।
8. माता पार्वती के लाड़ले हैं गणेश। मां का कहा-अमर वाक्य। मां के लिए वह शंकर जी से भी भिड़ गए थे। तभी लगी उऩके सूंड।
9. पुत्र धर्म का पालन करो। यही सीख गणेश जी की है।
10. हर आकार-प्रकार में गणपति हैं। चाहे सुपारी हो या मिट्टी। यही पंचतत्व है। यही जीवन है। आकार-प्रकार कुछ भी हो, आपको गण होना चाहिए। यही जन, मन और गण है। इसी से निकला-गण। एक शक्ति। एकाकार शक्ति। श्री, शक्ति और समृद्धि का गण।
गणेश चतुर्थी का यही संदेश है।