ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव में लंकापति रावण का नाम आदर के साथ लेते हैं लोग
ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव में लंकापति रावण का नाम आदर के साथ लेना पड़ता है। गांव के हर सदस्य के लिए वह रावण बाबा हैं। दशहरा पर जहां पूरे देश में रावण के पुतले जलाए जाएंगे, वहीं बिसरख में ऐसा करना...
ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव में लंकापति रावण का नाम आदर के साथ लेना पड़ता है। गांव के हर सदस्य के लिए वह रावण बाबा हैं। दशहरा पर जहां पूरे देश में रावण के पुतले जलाए जाएंगे, वहीं बिसरख में ऐसा करना वर्जित है। दरअसल, मान्यता है कि रावण का जन्म बिसरख में हुआ था। उनके पिता महर्षि विश्रवा का आश्रम यहीं था।
गांव में एक शिव मंदिर है। जो 'रावण का मंदिर' नाम से विख्यात है। इस प्राचीन शिव मंदिर के महंत राम दास ने बताया कि लंका नरेश इस गांव में पैदा हुए थे। इसी कारण इस मंदिर को रावण मंदिर के नाम से जाना जाता है। रावण का जन्म ऋषि विश्रवा के यहां हुआ था। वह भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। उनका बचपन बिसरख में बीता था। महंत राम दास का कहना है कि, हम रावण के पुतले नहीं जलाते हैं। वह हमारे गांव के पुत्र थे। वह यहां पैदा हुए थे और हमें इस पर गर्व होता है। यहां के लोग बाबा के साथ उनका संबोधन करते हैं।
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मंदिर में अष्टभुजा शिवलिंग
रावण मंदिर में एक शिवलिंग हैं, जो आठ भुजाओं वाला है। गांव के राजवीर सिंह भाटी ने बताया कि इसे अष्टभुजा शिव कहा जाता है। गांव के ने बताया, हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि इस शिवलिंग की स्थापना महऋषि विश्रवा ने की थी। उन्हें उनके बुजुर्गों ने यह जानकारी दी थी। इसी तरह यह मान्यता एक पीढ़ी से दूसरी तक आ रही है।
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भगवान शंकर की होती है पूजा
गांव के लोग मंदिर में भगवान शंकर की पूजा करने आते हैं। यहां रावण की पूजा नहीं की जाती है। किसान नेता मनवीर भाटी का कहना है कि करीब दो वर्ष पूर्व मंदिर में रावण की मूर्ति स्थापित करने का प्रयास किया गया था। उस पर विवाद हो गया था। हम लोग रावण की विद्वता पर गर्व करते हैं। इसी कारण उनका पुतला नहीं जलाते हैं, लेकिन उनकी पूजा भी नहीं की करते हैं।
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गांव में रामलीला नहीं होती
बिसरख के ग्रामीण रामलीला का आयोजन नहीं करते हैं। मनवीर ने बताया, जब हम लोग छात्र थे तो दो बार रावण का पुतला जलाने की कोशिश की। दोनों बार जिन लोगों के घरों के आसपास पुतला लगाया गया उनकी मौत हो गई थी। यह कैसे हुआ, समझ नहीं आया। संयोग हो सकता है या रावण का प्रभाव भी संभव है। उसके बाद किसी ने गांव में रामलीला करने या रावण का पुतला जलाने की हिम्मत नहीं की। हमारे गांव में दशहरा का पूजन भी नहीं होता है।
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तांत्रिक ने करवाई थी खुदाई
गांव के लोगों ने बताया कि तांत्रिक चंद्रास्वामी ने इस मंदिर की नब्बे के दशक में खुदाई करवाई थी। मंदिर परिसर में रखी भगवान शिव की मूर्ति उसी खुदाई में निकली थी। हालांकि, इस मूर्ति के अलावा यहां कुछ नहीं मिला था।
विश्रवेश्वरा से बिसरख नाम पड़ा
महंत राम दास का कहना है कि महर्षि विश्रवा के कारण शुरुआती काल में इस स्थान का नाम विश्रवेश्वरा था। बाद में अपभ्रंश होते-होते जगह का नाम बदलकर बिखरख हो गया। पुराणों में विश्रवेश्वरा का जिक्र है।