Diwali 2018: दिवाली पर ऐसी मूर्ति की पूजा करने से घर में होगी बरकत, जानें
Diwali 2018: कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन हर साल दीपावली यानी दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। इस साल दिवाली 7 नवंबर 2018 को मनाई जा रही है। दिवाली पर धन की देवी लक्ष्मी और बुद्धि के देवता गणपति...
Diwali 2018: कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन हर साल दीपावली यानी दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। इस साल दिवाली 7 नवंबर 2018 को मनाई जा रही है। दिवाली पर धन की देवी लक्ष्मी और बुद्धि के देवता गणपति की पूजा की जाती है। दिवाली पर पूजा को लेकर एक और विधान है कि हर साल लक्ष्मी और गणेश की नई मूर्ति की पूजा की जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि दिवाली पर पूजा के लिए कैसी मूर्ति खरीदने से घर में बरकत आती है। आईए आपको बताते हैं कि गणेश और लक्ष्मी की कैसी मूर्ति खरीदने से घर में बरकत होती है..
गणेश की मूर्ति खरीदते समय इन बातों का रखें ध्यान-
हमेशा ध्यान रखें कि लक्ष्मी गणेश कभी भी एक साथ जुड़े हुए नहीं खरीदने चाहिए। पूजाघर में रखने के लिए लक्ष्मी और गणेश की ऐसी मूर्ति लेने चाहिए, जिनमें दोनों विग्रह अलग-अलग हों।
गणेश की मूर्ति में उनकी सूंड बाएं हाथ की तरफ मुड़ी होनी चाहिए। दाईं तरफ मुड़ी हुई सूंड शुभ नहीं होती है। सूंड में दो घुमाव भी ना हों
मूर्ति खरीदते समय हमेशा गणेश जी के हाथ में मोदक वाली मूर्ति खरीदें। ऐसी मूर्ति सुख-समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
गणेश जी की मूर्ति में उनके वाहन मूषक की उपस्थिति अनिवार्य है।
सोने, चांदी, पीतल या अष्टधातु की मूर्ति खरीदने के साथ क्रिस्टल के लक्ष्मी-गणेश की पूजा करना शुभ होता है।
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लक्ष्मी की मूर्ति खरीदते समय इन बातों का रखें ध्यान-
लक्ष्मी मां की ऐसी मूर्ति न खरीदें जिसमें मां लक्ष्मी उल्लू पर विराजमान हों। ऐसी मूर्ति को काली लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।
लक्ष्मी माता की ऐसी मूर्ति ऐसी लेनी चाहिए जिसमें वो कमल पर विराजमान हों। उनका हाथ वरमुद्रा में हो और धन की वर्षा करता हो।
कभी भी लक्ष्मी मां की ऐसी मूर्ति ना लेकर आएं जिसमें वो खड़ी हों। ऐसी मूर्ति लक्ष्मी मां के जाने की मुद्रा में तैयार माना जाता है।
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इसलिए करते हैं नई मूर्ति की पूजा-
हर साल मूर्ति बदलने को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। कई लोग इसे मंदिर में मूर्ति बदलने का एक अवसर मानते हैं तो कुछ लोग लक्ष्मी-गणेश की नई मूर्ति की पूजा को धर्म से जोड़ते हैं। लेकिन शास्त्रों में कहीं भी नई मूर्ति की पूजा से जुड़ी बातें देखने को नहीं मिली हैं। मान्यता ये भी है कि पुराने समय में सिर्फ धातु और मिट्टी की मूर्तियों का ही चलन था। धातु की मूर्ति से ज्यादा मिट्टी की मूर्ति की पूजा होती थी। जो हर साल खंडित और बदरंग हो जाती है। वहीं ऐसा भी माना जाता है कि कुम्हारों की आर्थिक मदद को ध्यान में रखते हुए नई मूर्ति खरीदने की शुरुआत की गई। वहीं कई ऐसी मान्यताएं हैं कि नई मूर्ति एक आध्यात्मिक विचार का भी संचार करती है जो गीता में श्रीकृष्ण ने दिया है। नई मूर्ति लाने से घऱ में नई ऊर्जा का संचार होता है।
(इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं तथा इन्हें अपनाने से अपेक्षित परिणाम मिलेगा। जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)