Dev uthani ekadashi 2018: पितृदोष से पीड़ित लोग जरूर करें देव उठावनी एकादशी व्रत, पढ़ें कहानी
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे हरिशयनी या देवशयनी एकादशी कहते हैं, के दिन ब्रह्मा, इन्द्र, रुद्र, अग्नि, वरुण, कुबेर, सूर्य आदि से पूजित श्रीहरि क्षीरसागर में चार माह के लिए शयन करने चले जाते हैं।...
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे हरिशयनी या देवशयनी एकादशी कहते हैं, के दिन ब्रह्मा, इन्द्र, रुद्र, अग्नि, वरुण, कुबेर, सूर्य आदि से पूजित श्रीहरि क्षीरसागर में चार माह के लिए शयन करने चले जाते हैं। इन चार माह के दौरान सनातन धर्म के अनुयायी विवाह, नव भवन निर्माण आदि शुभ कार्य नहीं करते। श्री विष्णु के शयन की चार माह की अवधि समाप्त होती है कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को। इस दिन श्रीहरि जाग जाते हैं। इस एकादशी को देव उठावनी और देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। इस बार यह 19 नवंबर को है। इसी दिन से मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं। यूं तो श्रीहरि कभी भी सोते नहीं, लेकिन ‘यथा देहे तथा देवे' मानने वाले उपासकों को विधि-विधान से उन्हें जगाना चाहिए। श्री हरि को जगाते समय- ‘उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम॥ उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गता मेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिश:॥ शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।' आदि मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। .
इस एकादशी के बारे में कहा जाता है कि इसका उपवास कर लेने से हजार अश्वमेघ एवं सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। पितृदोष से पीडि़त लोगों को अपने पितरों के लिए यह व्रत जरूर करना चाहिए, जिससे उनके पितृ नरक के दुखों से छुटकारा पा लें।
पौराणिक कथा है कि एक राजा के देश में सभी एकादशी का व्रत करते थे। केवल फलाहार लेते थे। व्यापारी इस दिन अन्न आदि नहीं बेचते थे। राजा की परीक्षा लेने के लिए एक दिन श्रीहरि एक सुंदर स्त्री का रूप बना कर वहां आए। उसी समय राजा उधर से जा रहे थे। राजा ने स्त्री से विवाह करने की इच्छा प्रकट की। तब उसने शर्त रखी, ‘मैं इस शर्त पर विवाह करूंगी, जब आप राज्य के सारे अधिकार मुझे देंगे। जो भोजन मैं बनाऊंगी, वही खाना होगा।' राजा मान गए। एकादशी पर रानी ने बाजार में अन्न बेचने का हुक्म दिया। घर में मांसाहारी चीजें बनाईं। तब राजा ने कहा, ‘मैं एकादशी को सिर्फ फलाहार ही करता हूं।' रानी ने राजा को शर्त के बारे में याद दिलाया,‘अगर आप मेरा बनाया भोजन नहीं खाएंगे तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट दूंगी।' राजा को दुविधा में देख तब बड़ी रानी ने कहा,‘पुत्र तो फिर भी मिल जाएगा, लेकिन धर्म नहीं मिलेगा।' राजकुमार को जब यह बात मालूम हुई तो वह पिता के धर्म की रक्षा के लिए सिर कटाने को तैयार हो गया। उसी समय श्रीहरि अपने वास्तविक रूप में आ गए। कहा,‘राजन! आप परीक्षा में सफल हो गए हैं। कोई वर मांगो।' राजा ने कहा, ‘मेरे पास आपका दिया हुआ सब है। मेरा उद्धार कर दें।'राजा को तब स्वयं श्रीहरि विमान में बिठा कर देवलोक ले गए।