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Dev Uthani 2018 कल: चार महीने बाद नींद से जागेंगे भगवान विष्णु, देवता मनाते हैं दिवाली

Dev Utani Ekadashi 2018: कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इसे देवोत्थान एकादशी, देव उठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी के नामों से भी जानते हैं, जो कि इस साल 19 नवंबर...

Dev Uthani 2018 कल: चार महीने बाद नींद से जागेंगे भगवान विष्णु, देवता मनाते हैं दिवाली
लाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीSun, 18 Nov 2018 04:29 PM
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Dev Utani Ekadashi 2018: कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इसे देवोत्थान एकादशी, देव उठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी के नामों से भी जानते हैं, जो कि इस साल 19 नवंबर 2018 को मनाई जाएगी। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु चार महीने की गहरी नींद के बाद जागते हैं। उनके उठने के साथ ही हिन्दू धर्म में शुभ-मांगलिक कार्य आरंभ होते हैं।

दुनिया की जिम्मेदारी संभालते हैं भगवान शंकर


आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं, इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में सोने के लिए चले जाते हैं। उनके सोने के बाद हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता। इसके बाद भगवान चार महीने बाद देवउठनी एकादशी को अपनी निंद्रा तोड़ते हैं। इस दौरान पूरे जगत के पालन की जिम्मेदारी भगवान शंकर और अन्य देवी-देवताओं के जिम्मे आ जाती है।

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देवी-देवता मनाते हैं देव दिवाली


देवशयनी एकादशी के दिन सोने के बाद भगवान विष्णु चार महीने बाद देवउठनी एकादशी को जागते हैं। इन चार महीनों में ही दिवाली मनाई जाती है, जिसमें भगवान विष्णु के बिना ही मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लेकिन देवउठनी एकादशी को जागने के बाद देवी-देवता भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की एक साथ पूजा करके देव दिवाली मनाते हैं।

तुलसी-शालीग्राम विवाह


देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और भगवान शालीग्राम का विवाह भी करवाया जाता है। भगवान विष्णु को तुलसी काफी प्रिय है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक विष्णु भक्त के साथ छल किया था। जिसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था, लेकिन लक्ष्मी माता और देवी-देवताओं के विनती के बाद उन्हें वापस सही करके सती हो गई थी। उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उनके साथ शालीग्राम के विवाह का चलन शुरू हुआ।

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ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं  पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया  गया है।

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