Hindi Newsधर्म न्यूज़Demonstration of Vijay Mudra by raising two fingers of Lord Parashuram

भगवान परशुराम की देन है दो उंगलियों को उठाकर विजय मुद्रा का प्रदर्शन

आज लोग किसी भी जीत को प्रकट करने के लिए जिन दो उंगलियों को उठाकर विजय मुद्रा का प्रदर्शन करते हैं, वह भगवान परशुराम जी की विजय मुद्रा की नकल मात्र है। भगवान परशुराम की इस विजय मुद्रा के कई भाव हैं।...

Yuvraj लाइव हिन्दुस्तान टीम, मेरठ Mon, 27 April 2020 02:27 AM
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भगवान परशुराम की देन है दो उंगलियों को उठाकर विजय मुद्रा का प्रदर्शन

आज लोग किसी भी जीत को प्रकट करने के लिए जिन दो उंगलियों को उठाकर विजय मुद्रा का प्रदर्शन करते हैं, वह भगवान परशुराम जी की विजय मुद्रा की नकल मात्र है। भगवान परशुराम की इस विजय मुद्रा के कई भाव हैं। इसका एक भाव है, जो शासक जीव और परमात्मा में अंतर समझते हैं, उनका उन्होंने मर्दन किया है।
भगवान परशुराम ने प्रतिज्ञा ली है कि अवैदिक अमर्यादित राजा उनके कुठार से बच नहीं सकते। इसीलिए उन्होंने तर्जनी और मध्यमा दो उंगलियों को प्रदर्शित कर अर्ध-पताका मुद्रा बनाई है। विशेष बात यह कि यह मुद्रा दुष्टों के संहार को परिलक्षित करती है, साथ ही सज्जनों के लिए अभयदान को दर्शाती है।

अक्षय तृतीया को होता है भगवान परशुराम का जन्मोत्सव
अक्षय तृतीया को ही नर-नारायण और परशुराम जी के अवतार हुए, इसीलिए इस दिन भगवान परशुराम का जनमोत्सव मनाया जाता है। भारतीय कालगणना के सि‍द्धांत से इसी दिन सतयुग की समाप्ति एवं त्रेता युग का आरंभ हुआ। इसीलिए इस तिथि को सर्वसिद्ध (अबूझ) तिथि के रूप में मान्यता मिली हुई है।

जाति नहीं अत्याचारियों के विरोधी हैं भगवान परशुराम
भगवान परशुराम के बारे में प्रचलित है कि उन्होंने 21 बार भूमि को क्षत्रिय विहीन कर दिया था, लेकिन उनके रहते हुए भी जनक, दशरथ जैसे क्षत्रिय राजा थे। उन्होंने दुष्ट दमन के लिए त्रेता में भगवान शिव से प्राप्त शारंग धनुष भगवान राम को दिया तथा द्वापर में भगवान विष्णु से प्राप्त बज्रनाभ चक्र सुदर्शन भगवान श्रीकृष्ण को प्रदान किया। वास्तव में परशुराम हर क्षत्रिय के विरोधी नहीं थे। उन्होंने अन्याय के पथ पर चलने वाले क्षत्रियों को ही सबक सिखाया और न्याय के पथ पर चलकर राज्य करने की सीख दी। उनके प्रमुख शिष्यों में भगवान कृष्ण के गुरु संदीपनी एवं द्रोणाचार्य के साथ ही क्षत्रिय भीष्म और कर्ण भी थे।

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