इस घटना के बाद गांधी जी ने वापस ले लिया था असहयोग आंदोलन
चौरीचौरा कांड को 100 साल पूरे हो गए हैं। चौरीचौरा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले में एक कस्बा है। यह दो गांव चौरी और चौरा का मिलाजुला क्षेत्र है। चौरी-चौरा ब्रिटिश शासन काल में कपड़ों की बड़ी मंडी हुआ...
चौरीचौरा कांड को 100 साल पूरे हो गए हैं। चौरीचौरा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले में एक कस्बा है। यह दो गांव चौरी और चौरा का मिलाजुला क्षेत्र है। चौरी-चौरा ब्रिटिश शासन काल में कपड़ों की बड़ी मंडी हुआ करता था। अंग्रेजी शासन के समय गांधीजी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य अंग्रेजी शासन का विरोध करना था। इस आंदोलन के दौरान देशवासी ब्रिटिश उपाधियों, सरकारी स्कूलों और अन्य वस्तुओं का त्याग कर रहे थे और चौरी चौरा में भी विरोध हो रहा था।
विरोध प्रदर्शन के चलते दो फरवरी 1922 को पुलिस ने दो क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ़्तारी का विरोध करने के लिए हजारों क्रांतिकारियों ने थाने के सामने ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रदर्शन किया। प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसा दीं। इसमें तीन प्रदर्शनकारियों की मौत हुई और कई लोग घायल हो गए। प्रदर्शनकारियों को उग्र होता देख पुलिसकर्मी थाने में छिप गए और आक्रोशित भीड़ ने थाना घेरकर उसमें आग लगा दी। इस घटना में कुल 23 पुलिसकर्मियों की जलकर मौत हो गई। यह घटना जब गांधीजी को पता चली तो उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। क्रांतिकारियों की ओर से मुकदमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने लड़ा था। 19 लोगों को इस घटना के लिए फांसी दी गई। चौरी-चौरा कांड की याद में 1973 में गोरखपुर में 12.2 मीटर ऊंची मीनार बनाई गई। भारतीय रेलवे ने दो ट्रेनें भी चौरी-चौरा के शहीदों के नाम से चलवाई। इन ट्रेनों के नाम हैं शहीद एक्सप्रेस और चौरी-चौरा एक्सप्रेस। जनवरी 1885 में यहां चौरीचौरा नाम से रेलवे स्टेशन की स्थापना की गई।