चौरचन त्योहार: गणेश चतुर्थी के दिन मनाया जाता है चौरचन, होती है चंद्रदेव और गणेश जी की आराधना
मिथिलांचल में चौरचन (चौठचंद्र) पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। भाद्रपद की चतुर्थी तिथि यानी जिस दिन गणेश चतुर्थी के दिन ही चौरचन पर्व मनाया जाता है। महाराष्ट्र में जहां इस दिन लोग गणपति की स्थापना करते...
मिथिलांचल में चौरचन (चौठचंद्र) पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। भाद्रपद की चतुर्थी तिथि यानी जिस दिन गणेश चतुर्थी के दिन ही चौरचन पर्व मनाया जाता है। महाराष्ट्र में जहां इस दिन लोग गणपति की स्थापना करते हैं वहीं मिथिला में इस दिन गणेश और चंद्र देव का पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत रखा जाता है और शाम को चांद को अर्घ्य देकर ही व्रत पूरा होता है। एक तरफ जहां छठ में सूर्य की उपासना हो या चौरचन में चांद की पूजा का विधान है। माना जाता है कि इस पूजा के करने से भगवान चंद्रदेव प्रसन्न होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इसके पीछे की कहानी है कि चंद्र देव ने अपनी सुंदरता के अभिमान में भगवान गणेश का मजाक उड़ा दिया, जिसके बाद भगवान गणेश ने उन्हें श्राप दे दिया। इसके बाद भगवान गणेश को मनाने के लिए चंद्र देव नें भाद्रपद की चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेश भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि जो भी इस खास मंत्र के साथ गणेश चतुर्थी को चंद्र देव का दर्शन करेगा, उसका जीवन निष्कलंक रहेगा। तभी से यह व्रत मनाया जा रहा है।
इश दिन मिट्टी के बर्तन में दही जमाया जाता है। कहते हैं इसका स्वाद बहुत ही खास होता है। इसके अलावा इस दिन बांसके बर्तन में खास खीर बनाई जाती है। इसके साथ ही पूड़ी, पिरुकिया (गुझिया) और मिठाई में खाजा-लड्डू तथा फल के तौर पर केला, खीरा, शरीफा, संतरा आदि चढ़ाया जाता है।