भक्ति महात्म्य: ईश भजन सारथि सुजाना
जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने चट्टान काट कर शिव की मूर्ति पूजा की, तब निराकार से साकार युग का भी सूत्रपात किया। स्वयं एक अवतारी पुरुष द्वारा परम पुरुष की सार्वजनिक उपासना का मतलब है कि वनवास और...
जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने चट्टान काट कर शिव की मूर्ति पूजा की, तब निराकार से साकार युग का भी सूत्रपात किया। स्वयं एक अवतारी पुरुष द्वारा परम पुरुष की सार्वजनिक उपासना का मतलब है कि वनवास और विरह की दुगनी पीड़ा के दौरान उन्हें परम शक्ति का स्पष्ट अहसास हुआ। इसलिए एक अवतारी पुरुष ने किसी अन्य पुरुष के समक्ष खुद को बौना मान कर उस परम पुरुष की सार्वजनिक उपासना की। हमारी इंद्रियों का उद्गम उस परम पुरुष, अंतर्यामी के वश में होने से उनकी मर्यादाओं का पालन एक कानून है। .
सयाने लोग जानते और मानते हैं कि माया इस परम पुरुष की प्रहरी है। इसके माध्यम से चयन के बाद हम परम पुरुष तक पहुंचते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में भी स्पष्ट किया गया है कि आस्तिक हो या नास्तिक, आखिरकार सब उन्हीं के पास जाते हैं और साथ ही, यह भी कि इस परम पुरुष का प्रत्यक्ष साक्षात्कार किया जा सकता है।.
तब परम पुरुष के साक्षात्कार की पात्रता किस व्यक्ति में मानी जाए? श्रीमद्भगवद्गीता में नित्ययुक्तता, समत्व, सूक्ष्म पर पकड़ आदि सूत्र बताए गए हैं। नित्ययुक्तता के लिए मूर्ति पूजा का प्रतिपादन हुआ। इसके लिए ब्रह्म की साकारता से निरंतर जुड़ाव चाहिए। साकार यानी व्यक्त ब्रह्म ही ईश्वर है। इस ईश्वर की नित्ययुक्तता हेतु साधकों ने भजन-कीर्तन, नाम स्मरण, जप, सुमिरन, अनुस्मरण, अनुचिन्तयन के तरीके ढूंढे़। विशेषकर इस युग में ‘सुमिरन' अंदर के कलुष को दूर करने की अचूक दवाई है। ‘अगुन-सगुन विच नाम सुसाखी उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी।' यह नाम सुमिरन निर्गुण और सगुण के बीच में समझदार साक्षी हैं और दोनों का ज्ञान कराने वाला चतुर दुभाषिया है। दूसरी ओर भावरहित, यांत्रिक पूजा को नकारते हुए श्री कृष्ण ने ‘तेषाम् सतत् युक्तानाम भजन्ति प्रीतिपूर्वक' सप्रेम जप सूत्र बतला कर यात्रा सुगम कर दी है। .
विभीषण ने अपनी शंका कही कि ‘हे नाथ! आपके पास न रथ है, न तन की रक्षा करने वाला कवच है न जूते ही हैं।' तब श्रीराम ने ‘लौकिक रथ से अलौकिक युद्ध नहीं जीता जाएगा'- यह कह कर बताया कि इस रथ को चलाने वाला चतुर सारथी ईश्वर का भजन है- ‘ईश भजन सारथि सुजाना'। इस समर्पण भाव को हानिरहित बताकर श्रीकृष्ण ने ‘योगक्षेम वहाम्यहम' की गारंटी दी है। जिसकी श्रीराम घोषणा कर चुके हैं- ‘भजहि जे मोहि तजि सकल भरोसा करउ सदा तिनके रखवारी'। यंत्रों का चकाचौंध से यंत्ररहित होने, शरीर, इंद्रियों और विचारों की स्थिरता हेतु ‘सुमिरन' निशुल्क दवाई है। ईश भजन एक कल्पवृक्ष है। ‘सुमिरत समन सकल जग जाला'।.
डॉ. अनिरूद्ध सारस्वत