भक्ति: पुकारो तो ईश्वर सुनते हैं सबकी पुकार
ईश्वर को जब भी कोई पुकारता है, वह उसका उत्तर अवश्य देते हैं। वह भी पुकार की प्रतीक्षा करते रहते हैं। बस इस पुकार में शिद्दत होनी चाहिए, व्याकुलता होनी चाहिए। ईश्वर को पाने की प्यास जब जाग जाएगी, तो...
ईश्वर को जब भी कोई पुकारता है, वह उसका उत्तर अवश्य देते हैं। वह भी पुकार की प्रतीक्षा करते रहते हैं। बस इस पुकार में शिद्दत होनी चाहिए, व्याकुलता होनी चाहिए। ईश्वर को पाने की प्यास जब जाग जाएगी, तो उन तक पहुंचना मुमकिन हो जाएगा। हृदय में यह व्याकुलता कैसे जागेगी? इसका एकमात्र उपाय है ईश्वर की निरंतर भक्ति, उनका निरंतर ध्यान।
कई बार लोग मुझसे यह प्रश्न पूछते हैं कि भगवान कहां मिलेगा? भगवान कैसे मिलेगा? इसके उत्तर में मैं कहना चाहूंगी कि आप *बिना तड़पे, बिना खोजे उसको पा लेना चाहते हो, पर वह तब तक नहीं मिलता, जब तक आप तड़पें नहीं। जितनी अधिक भूख लगी हो, उतना ही भोजन का रस भी अधिक मिलता है। पर अगर आपको भूख नहीं है तो फिर भले कोई कितना ही स्वादिष्ट भोजन आपके सामने रख दे, आप उस भोजन का आनन्द नहीं ले सकते हो।
ठीक ऐसे ही जिसके भीतर परमात्मा से मिलने की तड़प नहीं है, परमात्मा को मिलने की प्यास नहीं है, जो विरह की आग में जला नहीं है, उसके लिए परमात्मा का मिलना कभी हो ही नहीं सकता, उसके मिलने का सुख वह जान ही नहीं सकता। परम भक्त मीराबाई कहती हैं-
हे री! मैं तो प्रेम दीवानी,
मेरा दर्द न जाने कोई।
तड़प, उसके लिए तड़प। जितना तू तड़पेगा, परमात्मा उतना ही तेरे नजदीक आ जाएगा। इतनी तड़प भीतर उठ रही हो, तो हो ही नहीं सकता है कि परमात्मा मेघ बनकर तेरे ऊपर न बरसे। धरती जितनी प्यासी हो जाती है, बादल उतनी ही जोर से उस धरती पर बरसने को आ जाते हैं। इसलिए मैं कहती हूं, आप यह मत पूछो कि भगवान कब मिलेंगे? भगवान कैसे मिलेंगे? पूछना ही है तो यह पूछो कि मेरे भीतर प्यास कैसे जगे? हमारे भीतर तड़प कैसे जगे? अगर प्यास नहीं है, अगर मिलने की चाह नहीं है तो भगवान तुम्हारे दरवाजे पर आकर भी खड़ा हो जाए, तो तुम कहोगे कि अभी जाओ, मेरा दुकान खोलने का समय है। अभी फुरसत नहीं है। अभी मुझे तुम्हारी चाह नहीं है।
यह बात ध्यान रखना, परमात्मा बिना बुलाए कहीं जाता ही नहीं है। तुम उसको हजारों बार बुलाओ, फिर भी वह सुनता नहीं है। इसलिए नहीं कि वह बहरा है, इसलिए नहीं कि वह सुनना नहीं चाहता है, बल्कि इसलिए कि जब तक तुम्हें पुकारने की कला ठीक से नहीं आ जाती, तुम सही से पुकार नहीं पाते हो। जब तुम पुकार नहीं पाओगे, वह तुम्हें जवाब कैसे देगा?
तुम किसी ऐसे पहाड़ की चोटी पर खड़े हो जाओ, जहां नीचे घाटी हो, तो वहां से जोर से बोलने पर तुम्हारी ही आवाज वापिस आती है। ऐसे ही तुम जितने भाव से प्रार्थना करते हो, तुम्हारी ही प्रार्थना प्रतिध्वनित होकर वापिस तुम तक आती है। जब यह प्रतिध्वनि तुम तक आती है, तो इसी को कहते हैं कि भगवान का जवाब आ गया। तुम ऐसा करके देखना, तुम्हारे मन में यह जो शंका उठती है कि भगवान किसी की सुनता है और किसी की नहीं सुनता है, यह शंका दूर हो जाएगी।
अगर तुम चाहते हो परमात्मा तुम्हारी आवाज सुने तो हृदय की गहराइयों से उसे बुलाना होगा। तुम जितनी तड़प से पुकारोगे, उतनी ही जल्दी उसका जवाब आ जाएगा। इसीलिए कहा है कि-
तूने पुकारा नहीं, वह आया नहीं।
तूने चाहा नहीं, वह मिला भी नहीं॥
कभी भी दोष मत देना कि भगवान हमारी सुनता नहीं है। सच तो यह है कि तुम्हें सुनाना नहीं आता। जिसके हृदय से सिर्फ प्रार्थना ही निकलती है, जिसके कदम इस प्रेम की, भक्ति की, समर्पण की डगर पर पड़ जाते हैं, उनके ऊपर सहज ही प्रभु-कृपा होने लग जाती है। इसलिए अपने भीतर प्रभु-प्रेम की, प्रभु की विरह की आग को जलाए रखो। - आनन्दमूर्ति गुरुमां