जब सुदर्शन चक्र लेना भूले भगवान श्री कृष्ण
आंध्र प्रदेश में बम्मेर पोतन्ना एक संत थे। एक दिन वे अष्टम स्कन्ध का गजेन्द्र मोक्ष प्रसंग लिख रहे थे कि उनकी पत्नी का भाईश्रीनाथ आया और वह पढ़ने लगा, ‘मगरमच्छ ने गजेन्द्र का पैर पकड़ा और वह उसे...
आंध्र प्रदेश में बम्मेर पोतन्ना एक संत थे। एक दिन वे अष्टम स्कन्ध का गजेन्द्र मोक्ष प्रसंग लिख रहे थे कि उनकी पत्नी का भाईश्रीनाथ आया और वह पढ़ने लगा, ‘मगरमच्छ ने गजेन्द्र का पैर पकड़ा और वह उसे धीरे-धीरे निगलने लगा। तब गजेन्द्र के प्राण संकट में पड़ गये और उसने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की। पुकार सुनकर भगवान तुरंत वहां आ पहुंचे, पर जल्दी में अपने सुदर्शन चक्र को लेने का भी ध्यान न रहा।'.
वह इतना पढ़ कर रुक गया और अपने बहनोई का मजाक उड़ाकर बोला,‘आपने कैसे लिखा कि भगवान को सुदर्शन चक्र लेने का ध्यान न रहा। वे क्या लड़ाई देखने जा रहे थे? यदि सुदर्शन चक्र साथ में न ले जाएं, तो भला गजेन्द्र की मुक्ति कैसे होगी? कोई काव्य लिखने के पूर्व उसे अनुभव की कसौटी पर परखना आवश्यक होता है।'
पोतन्ना उस समय तो चुप रहे। दूसरे दिन उन्होंने अपने साले श्रीनाथ के लड़के को दूर खेलने भेज दिया और समीप के एक कुएं में एक बड़ा पत्थर डाल दिया। जोरदार आवाज हुई और पोतन्ना चिल्लाने लगे, ‘श्रीनाथ! दौड़ो, तुम्हारा बच्चा कुएं में गिर गया।'
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श्रीनाथ ने सुना, तो वह दौड़ते हुए आया और बिना कुछ सोचे कुएं में कूदने लगा। यह देख पोतन्ना ने उसे पकड़ लिया और बोले, ‘मूर्ख हो क्या, जो बिना कुछ सोचे कुएं में कूद रहे हो? तुमने यह भी नहीं सोचा कि तैरना आता है या नहीं और बच्चे को निकालोगे कैसे? रस्सी-बाल्टी तो साथ में लाए नहीं।'
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श्रीनाथ जब सोचने लगा, तो पोतन्ना बोले, ‘घबराओ नहीं, तुम्हारा बच्चा गिरा नहीं है। देखो, सामने से आ रहा है। मैं तो तुम्हें यह दिखाना चाहता था कि जिस पर प्रेम अधिक हो, उस पर संकट पड़ने पर मनुष्य की क्या दशा होती है? जिस प्रकार पुत्र-प्रेम के कारण तुम्हें रस्सी-बाल्टी लेने का स्मरण नहीं रहा, उसी प्रकार भगवान कृष्ण को भी सुदर्शन चक्र लेने का स्मरण न रहा।' और तब श्रीनाथ ने समझा कि प्रियजनों के दुख-कष्ट की बात सुनकर मनुष्य तो क्या, भगवान भी सुध-बुध खो बैठते हैं।