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Bakrid 2020: बकरीद पर कुर्बानी देने के क्या हैं नियम, जानें इसका इतिहास और महत्व

‘ हमने तुमको देख लिया, बस हमारी ईद मुबारक हो गई’  आज कुर्बानी का दिन ईद-उल-अजहा पूरे देश में मनाया जा रहा है। कोरोना वायरस के चलते इस बार ईद का त्योहार पहले जैसी रौनक लेकर नहीं...

Bakrid 2020: बकरीद पर कुर्बानी देने के क्या हैं नियम, जानें इसका इतिहास और महत्व
लाइव हिन्दुस्तान टीम ,नई दिल्ली Sat, 01 Aug 2020 08:25 AM
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‘ हमने तुमको देख लिया, बस हमारी ईद मुबारक हो गई’ 
आज कुर्बानी का दिन ईद-उल-अजहा पूरे देश में मनाया जा रहा है। कोरोना वायरस के चलते इस बार ईद का त्योहार पहले जैसी रौनक लेकर नहीं आया।मस्जिदों के इमाम और धर्मगुरुओं ने मुस्लिम समुदाय से सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के तहत घर में ही नमाज अदा करने की अपील की है। वहीं, बाजार की बात करें, तो कोरोना के कारण उत्पन्न हुई मंदी का असर बाजार पर भी देखा जा रहा है। स्थानीय बाजारों सहित देश के सभी बड़े बाजारों में भी पहले जैसी चहल-पहल नहीं दिख रही।

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार बकरीद का महत्व और कहानी 
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक 12वें महीने की 10 तारीख को बकरीद या ईद-उल-जुहा मनाई जाती है। बकरीद रमजान माह के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है।इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान किया था। ऐसा माना जाता है कि खुदा ने उनके जज्बे को देखकर उनके बेटे को जीवनदान दिया था।
हजरत इब्राहिम को 90 वर्ष की आयु में  एक बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने इस्माइल रखा। एक दिन अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को अपने प्रिय चीजों को कुर्बान करने का आदेश सुनाया। इसके बाद एक दिन दोबारा हजरत इब्राहिम के सपने में अल्लाह ने उनसे अपने सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देने को कहा तब इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए।
हजरत इब्राहिम को लग रहा था कि कुर्बनी देते वक्त उनकी भावनाएं उनकी राह में आ सकती हैं इसलिए उन्होंने अपनी आंख पर पट्टी बांध कर कुर्बानी दी।उन्होंने जब अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो उन्हें अपना बेटा जीवित नजर आया।वहीं कटा हुआ दुम्बा (सऊदी में पाया जाने वाला भेड़ जैसा जानवर) पड़ा था।इसी वजह से बकरीद पर कुर्बानी देने की प्रथा की शुरुआत हुई।


कुर्बानी के क्या है नियम 
बकरीद पर कुर्बानी वही लोग दे सकते हैं जिनके पास 52 तोला चांदी हो या इतने ही मूल्य का पैसा उनके पास हो। जिन लोगों के पास पहले से कर्ज है तो उसके लिए कुर्बानी जरूरी नहीं है। ऐसे जानवर की कुर्बानी नहीं दी जाती जिसको शारीरिक रूप से बीमारी है या शरीर का कोई हिस्सा ठीक नहीं है। कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है।एक हिस्सा गरीबों, दूसरा रिश्तेदारों और तीसरी हिस्सा अपने लिए रखा जाता है।
बकरीद पर कुर्बानी वही लोग दे सकते हैं जिनके पास 52 तोला चांदी हो या इतने ही मूल्य का पैसा उनके पास हो। जिन लोगों के पास पहले से कर्ज है तो उसके लिए कुर्बानी जरूरी नहीं है। ऐसे जानवर की कुर्बानी नहीं दी जाती जिसको शारीरिक रूप से बीमारी है या शरीर का कोई हिस्सा ठीक नहीं है। कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है।एक हिस्सा गरीबों, दूसरा रिश्तेदारों और तीसरी हिस्सा अपने लिए रखा जाता है।

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