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बगलमुखी जंयती: भय और कष्टों के निवारण को आज करें देवी बगलामुखी की साधना

वर्ष 2019 में बगलामुखी जयन्ती 12 मई को मनाई जाएगी। वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है। इसी कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है। बगलामुखी जयंती पर व्रत एवं...

बगलमुखी जंयती: भय और कष्टों के निवारण को आज करें देवी बगलामुखी की साधना
लाइव हिन्दुस्तान टीम,मेरठ Sun, 12 May 2019 03:18 PM
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वर्ष 2019 में बगलामुखी जयन्ती 12 मई को मनाई जाएगी। वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है। इसी कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है। बगलामुखी जयंती पर व्रत एवं पूजा उपासना कि जाती है साधक को माता बगलामुखी की निमित्त पूजा अर्चना एवं व्रत करना चाहिए।

बगलामुखी जयंती शत्रु नाशिनी बगलामुखी माता का विशेष पूजन किया जाता है। कई स्थानो पर रातभर भगवती जागरण भी आयोजित किए जाते हैं। बगलामुखी देवी शत्रुओं का नाश करने वाली देवी के रूप में पूजी जाती हैं। देवी अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।

पीले रंग की महत्ता
पंडितों के अनुसार मां बगलामुखी का एक नाम पितांबरा भी है। देवी बगलामुखी को पीला रंग अति प्रिय है। इसलिए इनके पूजन में पीले रंग के फूल और सामग्री की बहुत ज्यादा महत्ता है। देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है। पूजा करते समय भक्त को भी पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए। पीले फूल और नारियल चढ़ाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें।

कष्टों को दूर करती है देवी की उपासना
बगलामुखी देवी की उपासना से शत्रुओं का नाश होता और भक्त के हर प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है। बगलामुखी देवी के मंत्रों का जाप करने से साधक के प्रत्येक दुखों का नाश होता है।

इस मंत्र का जाप करें

श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

ऐसे करें देवी का पूजन
प्रात: काल जल्दी उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर, पीले वस्त्र धारण करें। इसके बाद देवी बगलामुखी का दरबार सजाएं और देवी का चित्र स्थापित करें। स्वच्छ मन से देवी की साधना करें। इस दौरान यदि कोई सिद्ध पुरुष या विद्वान पंडित साथ में हो तो पूजा बहुत ज्यादा असर करती है। याद रहें कि पूजा के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।

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