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Apara Ekadashi 2021: अपरा एकादशी कब है? जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और सूर्य और चंद्रमा की कैसी रहेगी स्थिति

ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को अपरा या अचला एकादशी कहते हैं। इस साल अपरा एकादशी 06 जून को है। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। हर महीने कृष्ण व शुक्ल पक्ष में एकादशी व्रत रखा...

Apara Ekadashi 2021: अपरा एकादशी कब है? जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और सूर्य और चंद्रमा की कैसी रहेगी स्थिति
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीThu, 27 May 2021 10:06 AM
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ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को अपरा या अचला एकादशी कहते हैं। इस साल अपरा एकादशी 06 जून को है। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। हर महीने कृष्ण व शुक्ल पक्ष में एकादशी व्रत रखा जाता है। ऐसे में हर महीने दो व्रत रखे जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अपरा एकादशी का व्रत व पूजन करने से व्यक्ति के पापों का अंत होता है। भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होने की भी मान्यता है। 

शास्त्रों के अनुसार, एकादशी के दिन तामसिक भोजन व चावल नहीं खाने चाहिए। कहा जाता है ऐसा करने से मन में अशुद्धता आती है। मान्यता है कि पांडवों ने महाभारत काल में अपरा एकादशी की महिमा भगवान श्रीकृष्ण के मुख से सुनी थी। श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में इस व्रत को करके महाभारत युद्ध में विजय हासिल की थी।

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अपरा एकादशी ग्रहों की स्थिति-

अपरा एकादशी के दिन चंद्रमा मेष राशि और सूर्य वृषभ राशि में है। सूर्य नक्षत्र रोहिणीऔर नक्षत्र पद अश्विनी और भरणी रहेगा।

अपरा एकादशी के शुभ मुहूर्त-

ब्रह्म मुहूर्त- 03:34 ए एम से 04:16 ए एम तक।
अभिजित मुहूर्त- 11:19 ए एम से 12:14 पी एम तक।
विजय मुहूर्त- 02:03 पी एम से 02:58 पी एम तक।
गोधूलि मुहूर्त- 06:23 पी एम से 06:47 पी एम तक।
अमृत काल- 06:22 पी एम से 08:10 पी एम तक।
निशिता मुहूर्त- 11:26 पी एम से 12:07 ए एम, जून 07 तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग- 04:57 ए एम से 02:28 ए एम, जून 07 तक।

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अपरा एकादशी पूजा विधि-

एकादशी के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्‍नान करने के बाद साफ वस्‍त्र धारण करके एकादशी व्रत का संकल्‍प लें। 
- उसके बाद घर के मंदिर में पूजा करने से पहले एक वेदी बनाकर उस पर 7 धान (उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा) रखें। 
- वेदी के ऊपर एक कलश की स्‍थापना करें और उसमें आम या अशोक के 5 पत्ते लगाएं। 
- अब वेदी पर भगवान विष्‍णु की मूर्ति या तस्‍वीर रखें। 
- इसके बाद भगवान विष्‍णु को पीले फूल, ऋतुफल और तुलसी दल समर्पित करें। 
- फिर धूप-दीप से विष्‍णु की आरती उतारें। 
- शाम के समय भगवान विष्‍णु की आरती उतारने के बाद फलाहार ग्रहण करें। 
- रात्रि के समय सोए नहीं बल्‍कि भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।
- अगले दिन सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथा-शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें। 
- इसके बाद खुद भी भोजन कर व्रत का पारण करें।

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