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इस दिन लक्ष्मी जी ने आंवले के वृक्ष की नीचे की शिवजी और विष्णु जी पूजा

इस दिन लक्ष्मी जी ने आंवले के वृक्ष की नीचे की शिवजी और विष्णु जी पूजा आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहते हैं। एक बार मां लक्ष्मी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए आईं तो उनकी इच्छा हुई कि भगवान शंकर व भगव

इस दिन लक्ष्मी जी ने आंवले के वृक्ष की नीचे की शिवजी और विष्णु जी पूजा
Anuradha Pandeyलाइव हिंदुस्तान टीम,नई दिल्लीTue, 01 Nov 2022 06:04 AM

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इस दिन लक्ष्मी जी ने आंवले के वृक्ष की नीचे की शिवजी और विष्णु जी पूजा
आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहते हैं। एक बार मां लक्ष्मी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए आईं तो उनकी इच्छा हुई कि भगवान शंकर व भगवान विष्णु की पूजा एक साथ की जाए। विष्णु जी को तुलसी अति प्रिय हैं व शंकर जी को बेल पत्र। इन दोनों वृक्षों के सभी गुण आंवले के वृक्ष में मौजूद हैं। अत देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की, ताकि दोनों भगवान प्रसन्न हो जाएं। जिस दिन यह पूजा की गई, वह दिन कार्तिक की नवमी तिथि थी। तभी से हर वर्ष कार्तिक की नवमी को ये पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ में विद्यमान रहते हैं। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। आंवला नवमी के दिन ही आदि शंकराचार्य ने ‘कनकधारा स्रोत’ की रचना की थी। कहा जाता है कि एक बार शंकराचार्य भिक्षा मांगते हुए एक गांव में पहुंचे। एक झोपड़ी बाहर खड़े होकर उन्होंने कहा, ‘भिक्षां देहि।’ झोपड़ी के अंदर एक गरीब वृद्ध महिला ने जब यह पुकार सुनी तो वह सोच में पड़ गई। वह इतनी गरीब थी कि उस समय उसके पास इस संन्यासी को देने के लिए कुछ भी नहीं था। बस, एक सूखा आंवला था। किसी तरह संकोच करते हुए उस वृद्धा ने वही आंवला हाथ में लिया और दरवाजा खोलते हुए शंकराचार्य से कहा कि मेरे पास आपको भिक्षा में देने के लिए इस सूखे आंवले के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। यह कहकर उसने शंकराचार्य की झोली में वह आंवला डाल दिया। शंकराचार्य से उस वृद्धा की यह हालत देखी नहीं गई। उन्होंने उसी क्षण ‘कनकधारा स्रोत’ की रचना करते हुए देवी लक्ष्मी की स्तुति की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर लक्ष्मी प्रकट हो गईं। उन्होंने लक्ष्मी जी से उस औरत की गरीबी दूर करने की प्रार्थना की। लक्ष्मी जी ने उसी क्षण वहां स्वर्ण आंवलों की वर्षा कर दी। और उस गरीब औरत की दरिद्रता दूर हो गई। पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक की शुक्ल नवमी को श्री कृष्ण ने वृंदावन से मथुरा के लिए प्रस्थान किया था।

डॉ. संजीव कुमार शर्मा

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