Amalaki Ekadashi 2020: भगवान विष्णु की विशेष कृपा पाने के लिए आमलकी एकादशी पर इस विधि से करें पूजा, मनोकामना होगी पूरी
हिन्दू पंचांग के अनुसार आमलकी एकादशी फाल्गुन माह के कृष्णा शुक्ल पक्ष को आती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल फरवरी या मार्च महीने में मनाई जाती है। इस बार आमलकी एकादशी 6 मार्च को है। ऐसे...
हिन्दू पंचांग के अनुसार आमलकी एकादशी फाल्गुन माह के कृष्णा शुक्ल पक्ष को आती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल फरवरी या मार्च महीने में मनाई जाती है। इस बार आमलकी एकादशी 6 मार्च को है। ऐसे में होली से पहले होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। आपको अगर भगवान विष्णु की विशेष कृपा पानी है, तो आप विशेष पूजन विधि से उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं।
आमलकी एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
आमलकी एकादशी की तिथि: 6 मार्च 2020
एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 मार्च 2020 को दोपहर 1 बजकर 18 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्तभ: 6 मार्च 2020 को सुबह 11 बजकर 47 मिनट तक
पारण का समय: 7 मार्च 2020 को सुबह 6 बजकर 40 मिनट से 9 बजकर 1 मिनट तक
आमलकी एकादशी की पूजा विधि
- आमलकी एकादशी से एक दिन पहले यानी कि दशमी को रात के समय भगवान विष्णुर का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
- एकादशी के दिन सबसे पहले नित्या कर्म से निवृत्त होकर स्नाषन करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- अब घर के मंदिर में विष्णु की प्रतिमा के सामने हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर व्रत का संकल्प करें।
- संकल्प लेते हुए इस प्रकार कहें, "मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता/रखती हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्री हरि मुझे अपनी शरण में रखें।
- अब विधि-विधान से श्री हरि विष्णु की पूजा करें।
- सबसे पहले विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराएं और पोंछकर वस्त्र पहनाएं।
- अब पुष्पक, ऋतु फल और तुलसी दल चढ़ाए।
- इसके बाद श्री हरि विष्णु की आरती उतारें और उन्हें प्रणाम करें।
- अब प्रतिमा को भोग लगाएं।
- पूजा करने के बाद पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें।
- आंवले के वृक्ष की पूजा से पहले सबसे पहले वृक्ष के चारों ओर की भूमि साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें।
- पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें।
- इस कलश में देवताओं, तीर्थों और सागर को आमंत्रित करें।
- कलश में पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें और फिर दीप जलाकर रखें।
- कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं।
- अब कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की मूर्ति स्थापित करें और विधिवत पूजा करें।
- शाम के समय एक बार विष्णुु जी की पूजा करें और फलाहार ग्रहण करें।
- रात्रि में भगवत कथा और भजन-कीर्तन करते हुए श्री हरि विष्णु का पूजन करें।
- अगले दिन यानी कि द्वादशी को सुबह ब्राह्मण को भोजन कराएं। उन्हें यथा शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
- इसके बाद आप स्वियं भी भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें।