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Ahoi ashtami vrat katha kahani: यहां पढ़ें अहोई अष्टमी व्रत की संपूर्ण कहानी

Ahoi ashtami vrat : अहोई अष्टमी सोमवार को मनाई जाएगी। इसमें महिलाएं बिना अन्न जल ग्रहण किए निर्जल व्रत रखती हैं। ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल ने बताया माता पार्वती के अहोई स्वरूप की अराधना की जाती है।

Ahoi ashtami vrat katha kahani: यहां पढ़ें अहोई अष्टमी व्रत की संपूर्ण कहानी
Yogesh Joshiलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीMon, 17 Oct 2022 05:00 AM

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अहोई अष्टमी सोमवार को मनाई जाएगी। इसमें महिलाएं बिना अन्न जल ग्रहण किए निर्जल व्रत रखती हैं। उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिर्विद पं. दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली ने बताया कि अहोई चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी 17 को सुबह 8:06 बजे के बाद शुरू होगी, जो अगले दिन सुबह 10:14 बजे तक रहेगी। इस पर्व में चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी का ही विशेष महत्त्व है। अत: अष्टमी तिथि में चंद्रोदय रात 11:10 बजे होगा। ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल ने बताया माता पार्वती के अहोई स्वरूप की अराधना की जाती है। महिलाएं अपनी संतान के लिए उपवास करती हैं। 

यहां पढ़ें अहोई अष्टमी व्रत की कथा:

साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी. मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटीकी खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया. इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।

स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटीभाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते हैं सात पुत्रोंकी इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा. पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

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सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरीइच्छा हो वह मुझ से मांग ले. साहूकार की बहु ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं. यदि आप मेरी कोख खुलवा देतो मैं आपका उपकार मानूंगी. गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली।

रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं. अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनीके बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है. इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहूने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।

छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है. गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।

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वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है. स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है. स्याहु छोटीबहू को सात पुत्र और सात पुत्रवधुओं का आर्शीवाद देती है। और कहती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना। सात सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देना। उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बेटी हुई मिली। वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। उसने सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देकर उद्यापन किया।

अहोई का अर्थ एक यह भी होता है 'अनहोनी को होनी बनाना.' जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था। जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकारकी बहु की कोख को खोल दिया, उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा पूर्ण करें।

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