Adhik maas 2020: अधिकमास के बारे में ये खास बातें जानते हैं आप
हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का सातवां महीना है आश्विन। इस मास में एक तरफ प्रकृ ति अपनी छटा बिखेर रही होती है, वहीं शक्ति की पूजा भी इस माह में ही संपन्न होती है शरद ऋतु के साथ दो मास...
हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का सातवां महीना है आश्विन। इस मास में एक तरफ प्रकृ ति अपनी छटा बिखेर रही होती है, वहीं शक्ति की पूजा भी इस माह में ही संपन्न होती है शरद ऋतु के साथ दो मास आश्विन और कार्तिक जुड़े हुए हैं, जिसमें आश्विन साधना का और कार्तिक आराधना का मास है। इस मास को हिंदू धर्म में बेहद पवित्र माना गया है। आश्विन का पहला पक्ष पितृ परंपरा को समर्पित है, इसलिए इसे ‘पितृपक्ष’ भी कहते हैं। सर्वपितृ अमावस्या के खत्म होते ही शुरू होता है आश्विन मास का दूसरा पखवाड़ा। यह पक्ष शक्ति की आराधना कर जीवन शक्ति को संचय करने का होता है। आश्विन के इस पक्ष में पहले नौ दिन के नवरात्रि अनुष्ठान हमारे जीवन में ऋतु परिवर्तन एवं प्राकृतिक सौगात के बीच खुद को संतुलित रखने का अवसर देते हैं। इस तरह पितृ और देव पूजा के बीच अपनी शक्ति को संतुलित करने का आश्विन माध्यम बनता है।
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हालांकि अधिमास यानी मलमास होने की वजह से इस बार दो आश्विन माह हो रहे हैं। मतलब यह माह 30 नहीं, बल्कि 60 दिन का है, जो 31 अक्तूबर तक रहेगा। इस वजह से नवरात्रि का पर्व इस बार 17 अक्तूबर से शुरू हो रहा है।
आश्विन मास शरद ऋतु का महीना है, जिसे धर्मगंथों में वैश्यों की ऋतु भी कहा गया है। चूंकि यह माह जीवन के अनुकूल होता है, इसलिए पुराने समय में व्यापार करने वाले लोग अश्व (घोड़े) पर माल लाद कर इस माह में निकलते थे। इस कारण भी इस महीने को आश्विन कहा जाता है। कहा जाता है कि इस माह में व्यक्ति को अपनी बुराइयों का त्याग कर मन शुद्ध करना चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा करना और कथा सुनना इन दिनों काफी उत्तम माना गया है। वैसे भी अभी अधिमास यानी पुरुषोत्तम मास चल रहा है, जिसमें विष्णु भगवान की पूजा का खास महत्व बताया गया है।
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वर्षा की समाप्ति के बाद आश्विन के आने से प्रकृति का सौंदर्य काफी निराला हो जाता है। इसीलिए यह समय व्यक्ति को अपने कर्म और तप के बीच सामंजस्य बनाने का अवसर भी होता है। इस मास का बखान खुद श्रीकृष्ण ने भी किया है। इस मास की पूर्णिमा ‘शरद पूर्णिमा’ कहलाती है, जो कृष्ण से जुड़ा दिन भी है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। यमुना तट पर आश्विन पूर्णिमा के दिन ही श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था। आश्विन मास, खासकर पूर्णिमा को स्वाध्याय, ईशपाठ, देव महिमा का श्रवण एवं दर्शन का विशेष विधान है। इससे रोगियों को हृदय रोग की संभावना भी खत्म हो जाती है।
भगवान श्रीराम को भी शरद यानी आश्विन का आगमन सुहावना लगता है। वह लक्ष्मण से कहते हैं- बरषा बिगत सरद रितु आई। लछमन देखहु परम सुहाई॥ जिस प्रकार मानव का प्रकाश पर्व दीपावली है, उसी प्रकार प्रकृति का प्रकाश पर्व आश्विन की पूर्णिमा है।
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