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मेरठ से धधकी थी क्रांति की ज्वाला

अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की पहली चिंगारी क्रांतिधरा मेरठ से फूटी। 10 मई 1857 को मेरठ में सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ। मेरठ को अंग्रेज सबसे सुरक्षित छावनी मानते थे, उन्हें इस बात का...

मेरठ से धधकी थी क्रांति की ज्वाला
लाइव हिन्दुस्तान टीम,meerutFri, 10 May 2019 07:23 PM
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अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की पहली चिंगारी क्रांतिधरा मेरठ से फूटी। 10 मई 1857 को मेरठ में सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ। मेरठ को अंग्रेज सबसे सुरक्षित छावनी मानते थे, उन्हें इस बात का बिलकुल अहसास नहीं था कि विद्रोह यहीं से होगा। 10 मई 1857 की सुबह अंग्रेज अफसरों के यहां कोई हिंदुस्तानी काम करने नहीं गया। दोपहर तक सूचना फैल गई कि विद्रोह होने वाला है। शाम होते होते विद्रोह के स्वर तेज हो गए। इसके बाद अंग्रेजों पर हमला बोल दिया गया।  

इतिहासकारों की मानें तो दस मई 1857 को शाम पांच बजे मेरठ में सदर कोतवाली के पास क्रांति की शुरुआत हुई। यह रविवार का दिन था। इस दिन किसी भी भारतीय सैनिक या व्यक्ति की शहादत का उल्लेख किसी रिकॉर्ड में नहीं मिलता। मेरठ छावनी के सैनिकों को 23 अप्रैल 1857 को चर्बी लगे कारतूस दिए गए। भारतीय सैनिकों ने इन्हें इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया। 24 अप्रैल 1857 को सामूहिक परेड बुलाई गई। 85 भारतीय सैनिकों के इनकार करने पर उन सभी का कोर्ट मार्शल कर दिया गया। मई छह, सात और आठ को कोर्ट मार्शल का ट्रायल हुआ, जिसमें 85 सैनिकों को दस साल कैद की सजा सुनाई गई। इस घटना ने क्रांति की तात्कालिक भूमिका तैयार कर दी। सजा सुनाए जाने के बाद अंग्रेजों ने सैनिकों पर जुल्म किए, उनकी वर्दी उतारकर लोहे की जंजीर और बेड़ियों में जकड़ दिया गया। 9 मई 1857 को उन्हें विक्टोरिया पार्क की जेल में बंद कर दिया गया। दस मई को क्रांतिकारियों ने विक्टोरिया पार्क स्थित जेल को तोड़कर यहां बंद 85 सैनिकों को मुक्त कराया और दिल्ली कूच कर गए। 11 मई की अलसुबह क्रांतिकारी दिल्ली लालकिला पहुंच गए और बहादुरशाह जफर से मिले। यह क्रांति मेरठ के साथ पूरे उत्तर भारत में फैल गई। मेरठ के बाद झांसी, काल्पी, बिठूर, लखनऊ तक क्रांति की ज्वाला धधक उठी।

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