इसलिए किया जाता गणेश प्रतिमा का विसर्जन
भगवान श्रीगणेश को सभी देवी देवताओं में अग्र पूज्य माना गया है। भगवान गणेश को बुद्धि का देवता माना गया है। हर मंगल कार्य में उन्हें सबसे पहले मनाया जाता है। भगवान गणपति जल तत्व के अधिपति...
भगवान श्रीगणेश को सभी देवी देवताओं में अग्र पूज्य माना गया है। भगवान गणेश को बुद्धि का देवता माना गया है। हर मंगल कार्य में उन्हें सबसे पहले मनाया जाता है। भगवान गणपति जल तत्व के अधिपति हैं। यही कारण है कि अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणपति की पूजा-अर्चना कर गणपति-प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश चतुर्थी से लगातार दस दिनों तक महाभारत कथा भगवान श्रीगणेश को सुनाई थी। इसे भगवान श्रीगणेश ने अक्षरश: लिखा था। जब वेदव्यास जी कथा सुना रहे थे तब उन्होंने अपनी आखें बंद कर रखी थी। उन्हें पता ही नहीं चला कि कथा का गणेशजी पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।
जब महर्षि ने कथा पूरी कर आंखें खोली तो देखा कि लगातार 10 दिन से कथा सुनते-सुनते गणेश जी का तापमान बहुत अधिक बढ़ गया है। उन्हें ज्वर हो गया है। महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश जी को निकट के कुंड में ले जाकर डुबकी लगवाई, जिससे उनके शरीर का तापमान कम हुआ।
माना जाता है भगवान गणपति गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक सगुण साकार रूप में इसी मूर्ति में स्थापित रहते हैं, जिसे गणपति उत्सव के दौरान स्थापित किया जाता है।
मान्यता है कि गणपति उत्सव के दौरान लोग अपनी जिस इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, वे भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं। गणेश स्थापना के बाद से 10 दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्छाएं सुन-सुनकर इतना गर्म हो जाते हैं कि चतुर्दशी को बहते जल में विसर्जित कर उन्हें शीतल किया जाता है।
गणपति बप्पा से जुड़े मोरया नाम के पीछे गणपति जी का मयूरेश्वर स्वरूप माना जाता है। गणेश-पुराण के अनुसार सिंधु नामक दानव के अत्याचार से बचने के लिए देवगणों ने गणपति जी का आह्वान किया। सिंधु का संहार करने के लिए गणेश जी ने मयूर को वाहन चुना और छह भुजाओं का अवतार धारण किया। इस अवतार की पूजा भक्त गणपति बप्पा मोरया के जयकारे के साथ करते हैं।