हनुमान जयंती: सूर्य को फल समझकर खाने चल दिए थे बजरंगबली
मारुतिनंदन हनुमान जी हिंदू धर्मशास्त्र में अत्यंत पूजनीय हैं। विद्या, बुद्धि, विवेक, ज्ञान, विज्ञान, समस्त ग्रह, नक्षत्र इनके आधीन हैं। यह अतुलितबलधामं हैं। मनोजवं हैं। भगवान राम के कारज सिद्ध...
मारुतिनंदन हनुमान जी हिंदू धर्मशास्त्र में अत्यंत पूजनीय हैं। विद्या, बुद्धि, विवेक, ज्ञान, विज्ञान, समस्त ग्रह, नक्षत्र इनके आधीन हैं। यह अतुलितबलधामं हैं। मनोजवं हैं। भगवान राम के कारज सिद्ध करने वाले हैं। इनके हृदय में राम का वास है। देवी भगवती की इन पर विशेष कृपा है।
सूर्य को फल समझकर इन्होंने मुंह में रख लिया, लेकिन इन्हीं सूर्य से इन्होंने दीक्षा भी प्राप्त की। हनुमान जी भगवान शंकर के 11वें रुद्रावतार हैं। वानरराज हैं। इनकी पूजा से जो फल प्राप्त होते हैं वह अतुलनीय हैं। इसलिए, उनके मंदिर भी सर्वाधिक हैं। वह नाना रूपों में प्रतिष्ठापित हैं। मंगलवार और शनिवार को भक्तों की मंदिरों में लगी कतारें बताती हैं कि हनुमान जैसा कोई नहीं।
जय बजरंगी-वीर बजरंगी
अतुलित बल होने पर भी इनको जरा अभिमान नहीं। कार्यदक्षता का मूल्यांकन दूसरे ही करते हैं। जब लंका जाने की बात हुई तो सब चुप। हनुमान जी भी चुप। तब जामवंत ने कहा, का चुप साधि रहो बलवाना। हनुमान जी लंका गए और सीताजी का पता लगाया। अपने आराध्य राम का कारज सिद्ध किया। जो बढ़ते हुए लोभरूपी सुरसा के मुख में प्रवेश करके भी उसके वश में नहीं हो सके, जिन्होंने काम की प्रतिमूर्ति सिंहिका निशिचरी के अनेक प्रयास करने पर भी उसके मायावी रूप-लावण्य सौंदर्य की ओर दृष्टि तक नहीं डाली, वह सिर्फ हनुमान ही हो सकते हैं।
लंकिनी के लाख बार ललकारने पर भी उत्तेजित न होकर मुष्टिक प्रहार द्वारा उसके अहं का नाश कर सके, वह हनुमान हैं। वे जल, थल, नभ में जहां भी गए, काम करके ही लौटे। आकाश में व्यवधान डालने वाली सुरसा, जल के भीतर आकर्षित करने वाली सिंहिका और थल पर विघ्न पहुंचाने वाली लंकिनी इन तीनों का ही इन्होंने मान-मर्दन किया।
हनुमान जन्म
ज्योतिषियों के अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे हुआ था। 22 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा है। चारों ओर जयंती की धूम है।
सूर्य को समझ लिया फल
एक दिन इनकी माता फल लाने के लिए इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुए सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने के लिए आकाश में उड़ने लगे। पवन भी तेजी से चले। सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर जलने दिया। हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिए लपके तो उसी समय राहू, सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहू का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहां से भाग गया। उसने इंद्र के पास जाकर शिकायत की, देवराज! आपने तो मुझे सूर्य और चंद्र दिए थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहू, सूर्य को पकड़ने जा रहा है।
राहू की बात सुनी तो इंद्र भी घबरा गए। उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहू को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहू पर झपट पड़े। राहू ने इंद्र को रक्षा के लिए पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्र से प्रहार किया। इससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई।
पवन ने हनुमान की यह दशा देखी तो उनको क्रोध आ गया। उन्होंने अपनी गति को रोक दिया। हवा न चले तो क्या होगा, सब तड़पने लगे।
पृथ्वी व्याकुल हो गई। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्माजी की शरण में गए।
ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गए। वे मूर्छित हनुमान को गोद में लिए उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार कर सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की।
उसी के बाद हनुमान जी को यह वरदान मिला कि उन पर और उनकी पूजा करने वाले पर किसी भी चीज का असर नहीं होगा। समस्त देवी-देवताओं, ग्रह-नक्षत्रों, भूत-पिशाच उनके नाम लेने मात्र से प्रसन्न हो जाएंगे।
हनुमान जी को मिले वरदान
- ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इसके अंग को हानि नहीं कर सकता।
- इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा।
- सूर्यदेव ने उन्हें अपने तेज का शतांश प्रदान किया। ग्रहों की शांति और शास्त्र मर्मज्ञ होने का आशीष।
- वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा।
- यमदेव ने अवध्य और निरोग रहने का आशीर्वाद दिया।
- यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिए।
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