मत्स्य पुराण में तीन, यम स्मृति में 5 और भविष्य पुराण में बताए गए हैं 12 प्रकार के श्राद्ध, क्या जानते हैं आप
- Shradh धर्मशास्त्रों में श्राद्ध के अनेक भेद बताए गए हैं। भविष्य पुराण में बारह प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख मिलता है। इन श्राद्धों के अलग-अलग उद्देश्य हैं, आइए जानें इनके बारे में
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार केवल पितृपक्ष में ही नहीं, बल्कि अन्य अवसरों पर भी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। ‘धर्मसिंधु’ के अनुसार श्राद्ध करने के 96 अवसर बताए गए हैं। एक साल की 12 अमावस्याएं, चार पुणादि तिथियां, 14 मन्वादि तिथियां, 12 संक्रांतियां, 12 वैधृति योग, 12 व्यतिपात योग, 16 पितृपक्ष, पांच अष्टका श्राद्ध, पांच अन्वष्टका श्राद्ध तथा पांच पूर्वेद्यु श्राद्ध। कुल मिलाकर श्राद्ध के ये 96 अवसर हैं।
इसके अलावा हमारे धर्मशास्त्रों में श्राद्ध के अनेक भेद बताए गए हैं। उनमें से मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध, यम स्मृति में पांच प्रकार के श्राद्ध तथा भविष्य पुराण में बारह प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख मिलता है। ये बारह श्राद्ध हैं—
नित्य श्राद्ध रोज किया जानेवाला तर्पण, भोजन के पहले गौ ग्रास निकालना नित्य श्राद्ध है।
नैमित्तिक श्राद्ध पितृपक्ष में किया जानेवाला श्राद्ध ‘नैमित्तिक श्राद्ध’ कहलाता है।
काम्य श्राद्ध अपनी किसी विशिष्ट कामना की पूर्ति के लिए किए जानेवाला श्राद्ध ‘काम्य श्राद्ध’ की श्रेणी में आता है।
वृद्धि श्राद्ध मुंडन, उपनयन, विवाह आदि के अवसर पर किया जानेवाला श्राद्ध ‘वृद्धि श्राद्ध’ कहलाता है। इसे नान्दीमुख भी कहते हैं।
पार्वण श्राद्ध अमावस्या या पर्व के दिन किए जानेवाले श्राद्ध को ‘पार्वण श्राद्ध’ कहा जाता है।
सपिंडन श्राद्ध मृत्यु के बाद प्रेतगति से मुक्ति के लिए मृतक के पिंड को पितरों के पिंड में मिलाना ‘सपिंडन श्राद्ध’ है।
गोष्ठी श्राद्ध गौशाला में वंशवृद्धि के लिए किया जानेवाला श्राद्ध ‘गोष्ठी श्राद्ध’ है।
शुद्धयर्थ श्राद्ध प्रायश्चित के रूप में अपनी शुद्धि के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराना ‘शुद्धयर्थ श्राद्ध’ कहलाता है।
कर्माग श्राद्ध गर्भाधान, सीमंत, पुंसवन संस्कार के समय किया जानेवाला श्राद्ध कर्म ‘कर्माग श्राद्ध’ की श्रेणी में आता है।
दैविक श्राद्ध सप्तमी तिथियों में हविष्यान्न से देवताओं के लिए किया जानेवाला श्राद्ध ‘दैविक श्राद्ध’ होता है।
यात्रार्थ श्राद्ध तीर्थयात्रा पर जाने से पहले और वहां पर किये जानेवाले श्राद्ध को ‘यात्रार्थ श्राद्ध’ कहते हैं।
पुष्ट्यर्थ श्राद्ध अपने वंश और व्यापार आदि की वृद्धि के लिए किया जानेवाला ‘पुष्ट्यर्थ श्राद्ध’ कहलाता है।
भविष्य पुराण में मुनि विश्वामित्र का दृष्टांत देकर 12 प्रकार के श्राद्धों का वर्णन किया गया है। विष्णु पुराण और गरुड़ पुराण में भी श्राद्ध संबंधी संदर्भ हैं। ऐसी भी मान्यता है कि पितरों की तृप्ति और मुक्ति के निमित्त दो यज्ञ किए जाते हैं, जो पिंड पितृयज्ञ तथा श्राद्ध कहलाते हैं।
इसके अलावा पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने के साथ-साथ ‘पंचबलि’ या ‘पंच ग्रास’ देने का भी विधान है, जिसमें ब्राह्मण भोज के साथ गाय, कुत्ता, कौआ, चींटी और देवताओं के निमित्त भी भोजन निकाला जाता है। इनमें गाय ‘पृथ्वी’ तत्व, कुत्ता ‘जल’ तत्व, कौआ ‘वायु तत्व’, चींटी ‘अग्नि’ तत्व और देवता ‘आकाश’ तत्व के प्रतीक हैं। इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर हम प्रकृति के पांच तत्वों के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं।
अरुण कुमार जैमिनि
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