Purnima, शरद पूर्णिमा पर 10 घंटे से ज्यादा देर तक भद्रा का साया, जानें खीर रखने का समय और विधि
संक्षेप: Sharad Purnima 2025 time: इस बार सोमवार को शरद पूर्णिमा पर भद्रा का साया मंडरा रहा है। इस दिन मां लक्ष्मी और चंद्रमा का पूजन कर खीर का भोग लगाया जाता है और उसे पूरी रात चंद्रमा की किरणों में रखा जाता है।

Sharad Purnima 2025 time: शरद पूर्णिमा को कोजागरी व्रत, रास पूर्णिमा, कमला व्रत और कौमुदी व्रत जैसे नामों से भी जाना जाता है। आश्विन माह में पड़ने वाली पूर्णिमा साल की सभी पूर्णिमाओं में श्रेष्ठ मानी जाती है। शरद पूर्णिमा पंचांग अनुसार 6 अक्टूबर को है। इस दिन लक्ष्मी पूजन व चंद्र पूजन का विधान है। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा का पूजन कर खीर का भोग लगाया जाता है और उसे पूरी रात चंद्रमा की किरणों में रखा जाता है। अगले दिन इस खीर को प्रसाद रूप में ग्रहण करना चाहिए। वहीं, पूर्णिमा पर चंद्र देव मीन राशि में रहेंगे साथ ही भद्रा का प्रभाव भी रहेगा। यही नहीं शरद पूर्णिमा पर 10 घंटे से ज्यादा देर तक भद्रा का साया मंडराने वाला है। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा पर खीर रखने का शुभ मुहूर्त और विधि-
शरद पूर्णिमा पर 10 घंटे से ज्यादा देर तक भद्रा का साया
हिन्दू पंचांग के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन दोपहर 12:23 बजे से लेकर रात में 10:53 मिनट तक भद्रा रहेगी। इस साल भद्रा का प्रभाव पृथ्वी पर भी रहेगा। ऐसे में इस दौरान चंद्र को अर्घ्य व खीर रखने से बचना बेहतर है।
शरद पूर्णिमा पर चांद निकलने का समय: शाम 05:27 मिनट पर चंद्रोदय होगा।
जानें खीर रखने का समय और विधि
पंचांग के अनुसार, 6 अक्टूबर को भद्रा का साया मंडरा रहा है। ऐसे में मां लक्ष्मी को दोपहर 12:23 बजे से पहले या रात में 10:54 मिनट के बाद खीर का भोग लगाएं। रात में 10:54 मिनट के बाद चंद्र देव को अर्घ्य दें व पूजन करें। इसके बाद खुले आसमान के नीचें चांद की रौशनी में खीर रखें। अगले दिन सुबह भोग लगाकर ग्रहण करने की परंपरा है।
शरद पूर्णिमा पर खीर रखने का महत्व: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी बैकुंठधाम से पृथ्वी पर आती हैं। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है। इसलिए सुख, सौभाग्य, आयु, आरोग्य और धन-संपदा की प्राप्ति के लिए इस पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की पूजा के साथ खीर का भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बरसात होती है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात में चांद की रोशनी में खीर रखने की और अगले दिन प्रसाद रूप में ग्रहण करने की परंपरा है।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं।





