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Pradosh Vrat : रवि प्रदोष व्रत आज, यहां पढ़ें व्रत कथा

  • Ravi Pradosh Vrat September 2024 : आज सितंबर माह का पहला रवि प्रदोष व्रत है। इस दिन शिवजी की पूजा-आराधना के साथ रवि प्रदोष व्रत कथा को सुनना या सुनाना बेहद शुभ माना जाता है।

Arti Tripathi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSun, 15 Sep 2024 02:55 AM
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Ravi Pradosh Vrat 15 September : द्रिक पंचांग के अनुसार, आज 15 सितंबर 2024 रविवार के दिन को भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। रविवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने से इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाएगा। मान्यता है की लंबी आयु और आरोग्यता का वरदान प्राप्त करने के लिए रवि प्रदोष व्रत रखना चाहिए। आज सुकर्मा योग में रवि प्रदोष रखा जाएगा। प्रदोष व्रत के दिन सायंकाल में शिवजी की पूजा-आराधना का बड़ा महत्व है। सितंबर माह में दो रवि प्रदोष रखे जाएंगे। पहले रवि प्रदोष आज 15 सितंबर को और 29 सितंबर को भी रविवार के दिन प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इसलिए दूसरा प्रदोष व्रत भी रवि प्रदोष व्रत कहलाएगा। रवि प्रदोष के दिन शिवजी की पूजा के साथ रवि प्रदोष व्रत की कथा सुनी जाती है।

रवि प्रदोष व्रत कथा : एक बार ऋषि समाज द्वारा सर्व प्राणियों के हित में परम पावन भागीरथी के तट पर विशाल गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस सभा में व्यास जी के परम शिष्य पुराणवेत्ता सूतजी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधारे। सूतजी को आते देख शौनकादि के 88,000 ऋषि-मुनियों ने खड़े होकर उन्हें दंडवत प्रणाम किया। महाज्ञानी सूतजी ने भक्तिभाव से ऋषियों को हृदय से लगाया और उन्हें आशीर्वाद दिया। विद्वान ऋषिगण और सभी शिष्य आसन पर विराजमान हो गए।

मुनिगण श्रद्धाभाव से पूछने लगे कि हे परम दयालु! कलिकाल में शंकर की भक्ति किस आराधना द्वारा उपलब्ध होगी। कृपया हम लोगों को बताने की कृपा करें,क्योंकि कलयुग के सर्व प्राणी पाप कर्म में रह रहकर वेद शास्त्रों से विमुख रहेंगे। हे मुनिश्रेष्ठ कलयुग में सत्कर्म की ओर किसी की रुचि न होगी। जब पुण्य क्षीण हो जाएंगे, तो मनुष्य की बुद्धि बुरे कर्मों की ओर स्वंय प्रेरित होगी। जिससे दुर्विचारी पुरुष वंश सहित समाप्त हो जाएंगे। इस भूमण्डल पर जो मनुष्य ज्ञानी होकर ज्ञान की शिक्षा नहीं देता, उस पर परमपिता परमेश्वर कभी प्रसन्न नहीं होते हैं। हे महामुने! ऐसा कौन-सा व्रत है, जिससे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। कृपा करके बतलाइए।

ऐसा सुनकर दयालु हृदय से सूतजी कहने लगे कि श्रेष्ण मुनि और शौनक जी आप धन्यवाद के पात्र है। आपके विचार प्रशंसनीय और सराहनीय हैं। आप वैष्णव अग्रगण्य हैं, क्योंकि आपके हृदय में सदा परहित की भावना समाहित है। इसलिए हे शौनकादि ऋषियों सुनो - मैं उस व्रत के बारे में बताता हूं, जिससे करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। धन वृद्धि, दुख विनाशक, सुख प्राप्त कराने वाला, संतान देने वाला और मनोवांछित फल की प्राप्ति कराने वाला व्रत होता है। यह व्रत तुमको सुनाता हूं, जो किसी समय भोलेनाथ ने सती जी को सुनाया था और उनसे प्राप्त यह परमश्रेष्ठ उपदेश मेरे पूज्य गुरुजी ने मुझे सुनाया था। जिसे समय पाकर आपको मैं शुभ बेला में सुनाता हूं।

सूतजी कहने लगे कि आयु,वृद्धि,स्वास्थ्य लाभ के लिए त्रयोदशी का व्रत करें। इस व्रत की विधि इस प्रकार है- सुबह स्नान कर निराहार व्रत रहें। शिवजी का ध्यान करें। शिव मंदिर में जाकर भोलेनाथ की पूजा करें। पूजा के बाद अर्द्ध पुण्ड का त्रिपुण्ड तिलक धारण करें। शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाएं। धूप,दीप और अक्षत से पूजा करें। शिवजी को ऋतु फल अर्पित करें। 'ऊँ नमःशिवाय' मंत्र का रुद्राक्ष की माला से जाप करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सामर्थ्यनुसार दान-दक्षिणा दें। इसके बाद मौन व्रत रखें। व्रती को सत्य बोलना है। इस व्रत में हवन आहुति भी देनी चाहिए।

शौनकादि ऋषि बोले- हे पूज्यवर, आपने यह बताया की यह व्रत परम गोपनीय, मंगलप्रद और कष्टनिवारक है। कृपया यह बताने का कष्ट करें कि यह व्रत किसने किया और उसे क्या फल प्राप्त हुआ?

श्रीसूत जी बोले- आप शिव के परम भक्त हैं, आपकी भक्ति देखकर मैं व्रती पुरुषों की कथा कहता हूं।

एक गांव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी पत्नी प्रदोष व्रत किया करती है और उसका एक पुत्र था। एक बार की बात है कि उसका पुत्र गंगा स्नान करने के लिए गया था। मार्ग में उसे चोरों ने घेर लिया और वह कहने लगे कि हम तुझे मारेंगे, नहीं तो तू अपने पिता का गुप्त धन बतलादे।बालक दीन भाव से कहने लगा कि हम अत्यंत दुखी दीन है। हमारे पास धन कहा हैं? चोर फिर कहने लगे कि तेरे पास पोटली में क्या बंधा है? बालन ने उत्तर दिया की मेरी माता ने मुझे रोटी बनाकर बांध दिया है। दूसरा चोर बोला कि भाई यह तो अति दीन-दुखी हृदय है, इसे छोड़िए। बालक इतनी बात सुनकर वहां से जाने लगा और एक नगर में पहुंचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। बालक थककर वहां बैठ गया और पेड़ की छाया में सो गया। उस नगर के सिपाही चोरों की खोज कर रहे थे और वह बालक के पास आ गए। सिपाही बालक को चोर समझकर राजा के पास ले गए और राजा ने उसे कारावास की आज्ञा दे दी। उधर बालक की मां शंकर जी का प्रदोष व्रत कर रही थी। उसी रात राजा को स्वप्न आया कि यह बालक चोर नहीं है, सुबह होते ही छोड़ दो नहीं तो आपका राज्य-वैभव जल्द ही नष्ट हो जाएगा। रात समाप्त होने पर राजा ने उस बालक से पूरी कहानी पूछी और बालन ने सारी कहानी बताई। बालक की बात सुनकर राजा ने सिपाही को भेजकर माता-पिता को बुला लिया। राजा ने जब उन्हें भयभीत देखो तो कहा कि तुम चिंता मत करो,तुम्हारा बालक निर्दोष है। हम तुम्हारी दरिद्रता देखकर पांच गांव दान में देते हैं। शिव की दया से ब्राह्मण परिवार अब सुखी रहने लगा। इस प्रकार से जो कोई इस व्रत को करता है, उसे आनंद की प्राप्ति होती है।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य है और सटीक है। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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