राखी पर दोपहर 1:30 बजे से शाम 7 बजे तक शुभ मुहूर्त, जरूर पढ़ें ये मंत्र
- रक्षाबंधन के पावन दिन बहन भाई को राखी बांधती है और भाई बहन को उपहार देता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शुभ मुहूर्त में राखी बांधन का बहुत अधिक महत्व होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भद्रा के समय राखी नहीं बांधनी चाहिए।
रक्षाबंधन के पावन दिन बहन भाई को राखी बांधती है और भाई बहन को उपहार देता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शुभ मुहूर्त में राखी बांधन का बहुत अधिक महत्व होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भद्रा के समय राखी नहीं बांधनी चाहिए। राखी के दिन भद्रा का खासा ध्यान रखा जाता है। इस बार रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा तिथि 19 अगस्त को सूर्योदय से पहले ही प्रातः 3:04 बजे शुरू हो जाएगी और पूरे दिन उपस्थित रहेगी। इसलिए इस बार रक्षाबंधन का पर्व 19 अगस्त सोमवार को मनाया जाएगा। इस बार 19 अगस्त रक्षाबंधन के दिन 3:04 बजे से भद्रा भी लग जाएगी और दोपहर 1 बजकर 29 मिनट तक भद्रा उपस्थित रहेगी। भद्रा काल में रक्षाबंधन पर्व मानना उचित नहीं है। इसलिए 19 अगस्त को रक्षा बंधन के दिन भद्रा समाप्त होने पर दोपहर 1:29 बजे के बाद ही बहनें भाइयों को राखी बांधें और रक्षाबंधन का पर्व मनाएं।
राखी बांधते समय ये मंत्र जरूर पढ़ें-
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामभि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।
विधि
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राखी बंधवाते समय भाई का मुख पूरब दिशा में और बहन का पश्चिम दिशा में होना चाहिए।
सबसे पहले बहनें अपने भाई को रोली, अक्षत का टीका लगाएं।
घी के दीपक से आरती उतारें, उसके बाद मिष्ठान खिलाकर भाई के दाहिने कलाई पर राखी बांधें।
दोपहर 1:30 बजे से शाम 7 बजे तक शुभ मुहूर्त
दोपहर 1:30 बजे से शाम 7 बजे तक लगातार चर लाभ और अमृत के शुभ चौघड़िया मुहूर्त उपस्थित रहेंगे, इसलिए दोपहर 1:30 बजे से शाम 7 बजे के बीच राखी बांधने के लिए श्रेष्ठ समय होगा।
रक्षाबंधन की पौराणिक कथा...
धार्मिक कथाओं के अनुसार जब राजा बलि ने अश्वमेध यज्ञ करवाया था तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांग ली थी। राजा ने तीन पग धरती देने के लिए हां बोल दिया था। राजा के हां बोलते ही भगवान विष्णु ने आकार बढ़ा कर लिया है और तीन पग में ही पूरी धरती नाप ली है और राजा बलि को रहने के लिए पाताल लोक दे दिया।
तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा कि भगवन मैं जब भी देखूं तो सिर्फ आपको ही देखूं। सोते जागते हर क्षण मैं आपको ही देखना चाहता हूं। भगवान ने राजा बलि को ये वरदान दे दिया और राजा के साथ पाताल लोक में ही रहने लगे।
भगवान विष्णु के राजा के साथ रहने की वजह से माता लक्ष्मी चिंतित हो गईं और नारद जी को सारी बात बताई। तब नारद जी ने माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय बताया। नारद जी ने माता लक्ष्मी से कहा कि आप राजा बलि को अपना भाई बना लिजिए और भगवान विष्णु को मांग लिजिए।
नारद जी की बात सुनकर माता लक्ष्मी राजा बलि के पास भेष बदलकर गईं और उनके पास जाते ही रोने लगीं। राजा बलि ने जब माता लक्ष्मी से रोने का कारण पूछा तो मां ने कहा कि उनका कोई भाई नहीं है इसलिए वो रो रही हैं। राजा ने मां की बात सुनकर कहा कि आज से मैं आपका भाई हूं। माता लक्ष्मी ने तब राजा बलि को राखी बांधी और उनके भगवान विष्णु को मांग लिया है। ऐसा माना जाता है कि तभी से भाई- बहन का यह पावन पर्व मनाया जाता है।
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