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महाभरणी श्राद्ध आज, गया के समान मिलता है फल, जान लें आज का कुतुप मुहूर्त

  • इस समय पितृपक्ष चल रहा है। आज पितृपक्ष का पांचवां दिन है। आज चतुर्थी का श्राद्ध किया जाता है। आज चतुर्थी श्राद्ध के साथ भी महाभरणी श्राद्ध भी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब किसी तिथि विशेष को अपराह्न काल के दौरान भरणी नक्षत्र होतै है तब इसे भरणी श्राद्ध कहते हैं।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 21 Sep 2024 04:07 AM
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इस समय पितृपक्ष चल रहा है। आज पितृपक्ष का पांचवां दिन है। आज चतुर्थी का श्राद्ध किया जाता है। आज चतुर्थी श्राद्ध के साथ भी महाभरणी श्राद्ध भी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब किसी तिथि विशेष को अपराह्न काल के दौरान भरणी नक्षत्र होतै है तब इसे भरणी श्राद्ध कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभरणी श्राद्ध का फल गया में किए गए श्राद्ध के समान है। पितृपक्ष में भरणी नक्षत्र को बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है। भरणी नक्षत्र के स्वामी यम हैं। ऐसा माना जाता है इस नक्षत्र में श्राद्ध करने से पितरों को शांति मिलती है। हिंदू पंचांगे के अनुसार भरणी नक्षत्र पितृ पक्ष में आमतौर पर चतुर्थी या पंचमी पर ही पड़ता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि ये इसी तिथि पर पड़ेगा। तृतीया या षष्ठी पर भी भरणी नक्षत्र पड़ सकता है। आइए जानते हैं आज यानी 21 सितंबर को कब है भरणी नक्षत्र, कुतुप काल और श्राद्ध-विधि:

भरणी नक्षत्र कब है-

इस बार चतुर्थी तिथि यानी 21 सितंबर को अपराह्न काल में भरणी नक्षत्र होने पर भरणी श्राद्ध किया जा सकता है।

भरणी नक्षत्र प्रारंभ- 21 सितंबर 2024 को 2 बजकर 43 मिनट से

भरणी नक्षत्र समाप्त- 22 सितंबर 2024 को 12 बजकर 36 मिनट तक

कुतुप काल : दोपहर 11:49 से 12:38 तक

श्राद्ध विधि

1. किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिए। 

2. श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है साथ ही यदि किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है। 

3. इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए।

4. यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए। भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें।

5. श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए। योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें और पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें।

 6. इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिए। इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए। मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए।

श्राद्ध पूजा की सामग्री: 

रोली, सिंदूर, छोटी सुपारी , रक्षा सूत्र, चावल,  जनेऊ, कपूर, हल्दी, देसी घी, माचिस, शहद,  काला तिल, तुलसी पत्ता , पान का पत्ता, जौ,  हवन सामग्री, गुड़ , मिट्टी का दीया , रुई बत्ती, अगरबत्ती, दही, जौ का आटा, गंगाजल,  खजूर, केला, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, मूंग, गन्ना।

(इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।)

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