
Kartik Purnima: कार्तिक पूर्णिमा पर त्रिपुरासुर पर शिव की विजय और देव दीपावली
संक्षेप: Kartik Purnima mehtav: भगवान शिव ने जिस दिन त्रिपुरासुर का वध किया था, उस दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। इसे ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ भी कहते हैं। भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर के वध की खुशी में देवताओं ने शिव की नगरी काशी में जाकर दीप जलाए
भगवान शिव ने जिस दिन त्रिपुरासुर का वध किया था, उस दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। इसे ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ भी कहते हैं। भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर के वध की खुशी में देवताओं ने शिव की नगरी काशी में जाकर दीप जलाए, इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को ‘देव दीपावली’ (05 नवंबर) भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार असुर तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने देवताओं को पराजित करने के लिए कठोर तप किया। उनके कठोर तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उनसे वरदान मांगने को कहा। तीनों ने अमर होने का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने यह अस्वीकार कर दिया, लेकिन ऐसा वरदान मांगने के लिए कहा, जिससे उन असुरों को मारना किसी के लिए भी असंभव जितना कठिन काम हो।

तीनों ने बहुत विचार कर वरदान मांगा, ‘आप हमारे लिए तीन अद्भुत नगरों का निर्माण करें। वे तीनों नगर जब अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में आएं और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की शक्ति रखता हो, वही व्यक्ति शांत अवस्था में हमें मारे। तभी हमारी मृत्यु हो। हमें मारने के लिए उस व्यक्ति को एक ऐसे रथ और बाण की आवश्यकता हो, जो बनाना असंभव हो।’ ब्रह्मा ने कहा, ‘तथास्तु!’ ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को तारकाक्ष के लिए स्वर्णपुरी, कमलाक्ष के लिए रजतपुरी और विद्युन्माली के लिए लौहपुरी का निर्माण करने के लिए कहा। ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त होने के बाद तीनों असुर सातों लोकों में आतंक मचाने लगे। उन्होंने देवताओं को पराजित कर देवलोक से बाहर निकाल दिया। इन तीनों असुरों को ही त्रिपुरासुर कहा जाता था।
त्रिपुरासुर के आतंक से त्रस्त होकर इंद्र देवताओं सहित भगवान शिव की शरण में गए। उनकी पीड़ा सुनकर शिवजी ने त्रिपुरासुर का संहार करने का निश्चय किया। भगवान शिव ब्रह्माजी द्वारा उन तीनों को दिए गए वरदान के अनुसार विशेष रथ पर सवार हुए। इस दिव्य रथ की हर एक चीज देवताओं से बनी थी। सूर्य और चंद्रमा रथ के पहिये बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चार घोड़े बने। हिमालय धनुष बने। शेषनाग प्रत्यंचा बने। भगवान विष्णु बाण बने। बाण की नोक बनेे अग्निदेव। भगवान शिव और तीनों असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अभिजित नक्षत्र में तीनों नगरों के एक पंक्ति में आते ही भगवान शिव ने अपने बाण से तीनों नगरों को जलाकर भस्म कर दिया और तीनों असुरों का अंत कर दिया। तभी से भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारि और त्रिपुरांतक हो गया। त्रिपुरांतक का अर्थ है, तीन पुरों का अर्थात नगरों का अंत करनेवाले।
अश्वनी कुमार





