आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की ये है पहली शर्त, एक कदम की दूरी पर होती है मुक्ति
संक्षेप: आध्यात्मिक मार्ग पर चलना आसान है लेकिन इसके नियमों का पालन करने के लिए मन पर वश होना आवश्यक है। अगर कुछ चीजों पर वश पा लिया गया तो समझिए कि मुक्ति अब सिर्फ एक कदम की दूरी पर ही खड़ी है। वास्तविकता से परिचय होना जरूरी है।

आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की पहली शर्त है कि आप अपने मन में किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं रखें और विशेष इच्छा तो बिल्कुल नहीं। आध्यात्मिक मार्ग पर यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप किसी विशेष जगह पहुंचने का प्रयत्न न करें, क्योंकि जैसे ही आप कुछ विशेष पाना चाहेंगे, आपका मन ‘वह विशेष स्थान’ बनाने लगेगा। आप अपना खुद का निजी स्वर्ग ही बना लेंगे।
आध्यात्मिक प्रक्रिया का अर्थ यह नहीं है कि आप वहम, मतिभ्रम के एक स्तर से निकल कर दूसरे स्तर पर पहुंच जाएं। यह इसलिए है कि आप अपने सारे वहम, सारे मतिभ्रम बिल्कुल ही छोड़ दें, पूर्ण रूप से त्याग दें। वास्तविकता को उसी रूप में स्वीकार करें, जैसी वह है, क्योंकि ये सारे प्रयत्न सत्य के बारे में हैं।
सत्य का अर्थ है, जो अस्तित्व में है, न कि वह जो आप अपने मन में बना लेते हैं। हम अपने मन में भगवान या शैतान देख सकते हैं- दोनों का ही महत्व नहीं है। आप जो कुछ देखते हैं, वह आपकी संस्कृति पर निर्भर करता है, और उन चीजों पर भी जिनका अनुभव आपको हुआ है। जब आप लोगों को देखते हैं, तो उनमें भगवान को देखते हैं या शैतान को- यह इस पर निर्भर करता है कि आप आशावादी हैं या निराशावादी। इसका संबंध वास्तविकता से नहीं होता। वास्तविकता तो यह है कि अभी आप यहां हैं और आपको यह भी नहीं पता कि आप किस कारण से यहां हैं, कहां से आए हैं और कहां जाएंगे? यही जीवन की वास्तविकता है।
वास्तविकता के साथ जीना सीखना सबसे महत्वपूर्ण बात है। आपको कुछ और नहीं करना है। अगर आप अपने मन में चीजों को तोड़ना-मरोड़ना, बिगाड़ना बंद कर दें और हरेक चीज को वैसे ही देखें, जैसी वह है, तो मुक्ति आपसे बस एक कदम ही दूर है। आपको कुछ भी नहीं करना है, समय ही सब कर लेगा। समय आपको और तरह से परिपक्व कर देगा।
आपको स्वयं को ऐसे बनाना है कि आप कोई कल्पना न करें, अच्छी या बुरी। आप कोई भगवान या शैतान न बनाएं, स्वर्ग और नर्क, अच्छा और खराब न बनाएं। ऐसा कुछ भी न हो कि, ‘मैं इस व्यक्ति को पसंद करता हूं, उसे नहीं करता।’ आप हर चीज को उसी तरह से देखना सीख लें, जैसी वह है, बस यही सब कुछ है। किसी खास समय पर, कुछ विशेष गतिविधि के लिए, हमें चीजों को एक विशेष रूप में देखना पड़ सकता है। बाकी समय आप उन्हें बस वैसी ही देखिए, जैसी वे हैं। आपको कुछ भी नहीं करना है, समय ही सब कर लेगा। समय आपको किसी और तरह से परिपक्व कर देगा। आपको स्वयं को ऐसे बनाना है कि आप कोई कल्पना न करें, अच्छी या बुरी।

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