ध्यान योग की सच्ची राह
संत-महापुरुष हमें समझाते आए हैं कि हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमारे बाहरी रूप चाहे अलग-अलग हैं, लेकिन हम सबके अंदर एक ही आत्मा मौजूद है, क्योंकि सभी आत्माएं एक ही परमात्मा की अंश हैं। इस जुड़ाव...

संत-महापुरुष हमें समझाते आए हैं कि हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमारे बाहरी रूप चाहे अलग-अलग हैं, लेकिन हम सबके अंदर एक ही आत्मा मौजूद है, क्योंकि सभी आत्माएं एक ही परमात्मा की अंश हैं। इस जुड़ाव या पारस्परिक संबंध को हम पानी की बूंदों से समझ सकते हैं। जब सभी बूंदें महासागर में मिल जाती हैं, तो वे उस महासागर का अंश होने के नाते आपस में जुड़ी होती हैं। हम बूंदों को महासागर से बाहर निकालकर अलग-अलग आकार के बर्तनों में रख सकते हैं।
लेकिन बर्तन का आकार, माप, रंग आदि चाहे जैसा भी हो, उसके अंदर रखे पानी का मौलिक स्वरूप कभी बदलता ही नहीं। प्रत्येक बूंद बिल्कुल वैसी ही रहती है, जैसी वो महासागर के अंदर थी। हम उन अलग-अलग बूंदों को बर्तनों से बाहर निकलकर दोबारा महासागर में डाल सकते हैं; इससे वे बूंदें वापस महासागर में मिलकर उससे एक हो जाती हैं। क्योंकि असल में बाहरी बर्तन के आकार के बदलने से उनमें कोई परिवर्तन नहीं आया होता।
इसी तरह हमारी आत्माएं एक समय पर प्रभु का अंश थीं, उनमें एकमेक थीं। हम सभी चेतनता के महासागर की बूंदें हैं, तथा प्रकाश व ध्वनि से भरपूर हैं। जब यह चेतनता की बूंद एक भौतिक शरीर के अंदर रखी जाती है, तो इससे उसके मौलिक स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं आता। वह निर्मल आत्मा ही रहती है। यहां फर्क केवल इतना ही है कि जब हम अपनी बाहरी आंखों से इस आत्मा रूपी बूंद को देखने की कोशिश करते हैं, तो हम इसे देख नहीं पाते, क्योंकि आत्मा को भौतिक आंखों से देखा नहीं जा सकता।
ध्यानाभ्यास के द्वारा हम अपनी आंतरिक एकता या जुड़ाव का अनुभव कर सकते हैं। अंतर में ध्यान लगाने की विधि द्वारा हम अपनी दृष्टि को बाहरी शीशे, जिसमें हम हाड़-मांस से बना अपना भौतिक चेहरा और शरीर देखते हैं, से हटाकर अंतर की ओर करते हैं, तथा दिव्य ज्योति व श्र ुति से बने अपने आत्मिक स्वरूप को देख पाते हैं। इस प्रकार, ध्यानाभ्यास आत्म-अनुभव प्राप्त करने की वह विधि है, जिसके द्वारा हम स्वयं की आत्मा से परिचित हो पाते हैं।
जरा इस अनुभव की अद्भुत शक्ति के बारे में सोचिए! जिन भी लोगों के प्रति हमारे दिल में घृणा, द्वेष या पूर्वाग्रह होते हैं, वो फिर हमें अपने से अलग नहीं लगते। हम जान जाते हैं कि उनके बाहरी रूप, रंग, और आकार केवल उनकी अंदरूनी सच्चाई के ऊपर चढ़ी परतें मात्र हैं, और वह सच्चाई है आत्मा, जो हमारे भीतर भी मौजूद है।
जब आत्मा एक इनसानी चोला धारण करती है, या किसी पशु-पक्षी या अन्य जीव के चोले में आती है, तो अंदर से तो वो अपरिवर्तनीय ही रहती है, और यही आत्मा हमारा वास्तविक स्वरूप है, हमारा सच्चा आपा है। इसे जान लिया, तो सारे विकारों से मुक्ति पाने का मार्ग मिल जाता है।
यदि आप अपने अंतरतम से परिचित हो जाते हैं, तो सांसारिक राग-द्वेष से ऊपर उठ जाते हैं। ध्यान योग हमें वह मार्ग दिखाता है, जहां हम हर आत्मा में एक ही प्रभु के दर्शन कर पाते हैं।
