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परमात्मा को अपना सर्वश्रेष्ठ समय दें, परमात्मा को पाने के लिए सुख और आनंद के अंतर को समझें

परमात्मा को पाना है, तो सुख और आनंद के अंतर को भी समझना होगा। परमात्मा का जब भी ध्यान करें, पूर्ण समर्पण के साथ करें। उन्हें गुणवत्तापूर्ण समय दें। ईश्वर की कृपा के लिए धैर्य से समर्पण भाव बनाए रखना ह

परमात्मा को अपना सर्वश्रेष्ठ समय दें, परमात्मा को पाने के लिए सुख और आनंद के अंतर को समझें
श्री श्री रविशंकर,नई दिल्लीTue, 26 Apr 2022 11:17 AM
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परमात्मा को पाना है, तो सुख और आनंद के अंतर को भी समझना होगा। परमात्मा का जब भी ध्यान करें, पूर्ण समर्पण के साथ करें। उन्हें गुणवत्तापूर्ण समय दें। ईश्वर की कृपा के लिए धैर्य से समर्पण भाव बनाए रखना होगा।

जब आप जानते हैं कि परमेश्वर आपके हैं, तो आप उनसे कुछ पाने की शीघ्रता में नहीं होते हैं। कुछ पाने की आपकी शीघ्रता आपका संतुलन बिगाड़ देती है और आपको दीन बना देती है।

परमात्मा ने आपको जगत के सभी अल्प सुख दिए हैं, लेकिन आनंद अपने पास रखा है। उच्चतम आनंद प्राप्त करने के लिए आपको उनके निकट अकेले ही जाना होगा। परमात्मा के साथ बहुत अधिक चतुराई नहीं चलती, उन्हें छलने का प्रयास व्यर्थ है। आपकी अधिकांश प्रार्थनाएं और अनुष्ठान केवल परमात्मा को धोखा देने का प्रयास हैं। आप उन्हें कम से कम देकर अधिक से अधिक प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। परमात्मा एक कुशल व्यापारी है; वह आपको और अधिक छल सकता है।

अपने प्रयासों में ईमानदार रहें। परमात्मा को मात देने का प्रयत्न न करें। एक बार जब आप आनंद प्राप्त कर लेते हैं, तो शेष सब सुखमय हो जाता है। आनंद के बिना संसार का सुख नहीं रहेगा। आप परमात्मा को किस प्रकार का समय देते हैं? आमतौर पर आप वह समय देते हैं, जो बचा हुआ होता है; जब आपके पास करने के लिए और कुछ नहीं है; यदि कोई अतिथि भी नहीं आया है और किसी भोज में भी सम्मिलित नहीं होना है; तब आप परमात्मा के पास जाते हैं। यह गुणवत्तापूर्ण समय नहीं है। परमात्मा को गुणवत्तापूर्ण समय दें; इसे पुरस्कृत किया जाएगा। यदि आपकी प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं मिलता है, तो इसका कारण यह है कि आपने कभी भी गुणवत्तापूर्ण समय नहीं दिया है। परमात्मा को सर्वश्रेष्ठ समय दें। आपको निश्चित रूप से पुरस्कृत किया जाएगा।

जब आपका लक्ष्य परमात्मा से वरदान पाने का होता है, तो आप शीघ्रता में होते हैं; लेकिन जब आप यह जानते हैं कि परमात्मा आपके अपने हैं, तो आपको कोई शीघ्रता नहीं होती। जब आप जानते हैं कि परमेश्वर आपके हैं, तो आप उनसे कुछ पाने की शीघ्रता में नहीं होते हैं। कुछ पाने की आपकी शीघ्रता आपका संतुलन बिगाड़ देती है और आपको दीन बना देती है।

जब आप यह जान लेते हैं कि आप ईश्वरीय योजना का अंश हैं, तो आप मांग करना बंद कर देते हैं। आप जानते हैं कि आपके लिए सब कुछ किया जा रहा है और आपकी देखभाल की जा रही है। साधारणतया हम शीघ्रता नहीं करने को दूसरे अर्थ में ले लेते हैं और मंद पड़ जाते हैं। अधीरता का अर्थ है मन में शीघ्रता लाना; आलस्य का अर्थ है कर्म में ढीलापन। मन में धैर्य और कर्म में गत्यात्मकता ही सही सूत्र है।

परमात्मा आपकी परीक्षा नहीं लेते। परीक्षा लेना अज्ञानता का भाग है। परमात्मा आपकी क्षमता को जानते हैं, तो फिर उन्हें आपकी परीक्षा क्यों लेनी पड़ती है? दुख क्यों आता है? यह आप में तितिक्षा या सहनशीलता बढ़ाने के लिए है। सहनशीलता को प्रार्थनापूर्ण समर्पण अथवा धैर्य को मिलने वाली विकट चुनौती से बढ़ाया जा सकता है!

आसक्तियों से ज्वरयुक्त श्वास उत्पन्न होती है और ज्वरयुक्त श्वास मन की शांति का हरण कर लेती है। तब आप टूट जाते हैं और दुख के शिकार हो जाते हैं। इससे पहले कि आप बहुत अधिक बिखर जाएं, अपने आप को एकत्र करें और समर्पण व साधना के जरिये अपनी श्वासों को ज्वर से मुक्त करें। दुर्भाग्य से अधिकतर लोग इसकी ओर तब तक ध्यान नहीं देते, जब तक कि बहुत देर न हो चुकी हो। जब कोई आसक्ति के सागर में डूब रहा हो तो समर्पण ही जीवनदान है। आसक्तियों से लड़े बिना ज्वर भरी श्वासों का निरीक्षण करें और अपने भीतर मौन के शीतल स्थान पर जाएं। इस दिशा में आपका पहला कदम ज्ञान और परमात्मा के प्रति आपके लगाव को निर्देशित करता है। सांसारिकता के प्रति अनासक्ति ही आपका आकर्षण है। परमात्मा से लगाव ही आपका सौंदर्य है।

ज्ञान आपका मित्र है। गुरु और कुछ नहीं, ज्ञान का मूर्त रूप है। ज्ञान प्राप्ति का अंत होता है। ज्ञान पूर्ण होता है, वैसे ही शिष्यता भी पूर्ण होती है। शिष्य ज्ञान प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करता है। प्रेम के पथ में न आदि है और न अंत। मिलन की उत्कंठा के कारण प्रेम अधूरा है, और इसलिए यह अनंत है, क्योंकि अनंत कभी पूर्ण नहीं हो सकता।

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