आषाढ़ मास ‘चातुर्मास’ की शुरुआत का प्रतीक है। यह समय तपस्वियों, संन्यासियों के लिए एक स्थान पर ठहरकर अनुशासन के साथ आत्मचिंतन और साधना का काल होता है। भारतीय वैदिक परंपरा में समय को केवल भौतिक नहीं,
यदि आप शरीर में सुधार लाना चाहते हैं तो आपको शरीर के लिए उपयोगी योगाभ्यासों का चुनाव करना होगा, लेकिन यदि आप तनाव और दबाव से गुजर रहे हैं, चिंताग्रस्त हैं, अवसाद, भय और मानसिक कुंठाओं से पीड़ित हैं तो आपको उन योगाभ्यासों को अपनाना होगा, जो मनुष्य के मनोवैज्ञानिक व्यवहार से संबंधित हैं।
किसी भी क्षेत्र में सफल बनने के लिए सबसे पहले खुद का विनम्र होना बहुत जरूरी है। इसकी मदद से आप जिंदगी में आ रही कई समस्याओं का हल भी चुटकी में निकाल पाएंगे।
भगवान यह उम्मीद नहीं करते कि चींटी जंगल में हाथी की तरह बड़ी लकड़ी खींच ले। न ही भगवान यह उम्मीद करते हैं कि हाथी अबाबील और कबूतर की तरह हवा में शान से उड़ सके।
कबीर व्यवसाय करते रहे और सादे हो गए। उन्होंने सादगी को अलग से नहीं साधा। अलग से साधोगे तो जटिल हो जाएगी। सादगी साधी नहीं जा सकती। समझ सादगी बन जाती है, इसलिए कबीर एक सामान्य मनुष्य के लिए आशा के द्वार हैं
मनुष्य का प्राथमिक कर्तव्य ज्ञान प्राप्त करना है। व्यक्ति को सांसारिक कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए और धर्म साधना भी करनी चाहिए। इसके साथ ही पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी देखना चाहिए। यह मनुष्य की साधना का एक चरण है।
ईश्वर का ध्यान करते समय मन स्थिर क्यों नहीं होता? मक्खी कभी हलवाई की दुकान में रखी मिठाई पर बैठती है, पर इतने में अगर कोई मैले की टोकरी लेकर सड़क पर से गुजरे तो वह तुरंत मिठाई को छोड़ मैले पर जा बैठती है।
हमारा अस्तित्व इस बात पर निर्भर करता है कि हम यह समझें और महसूस करें कि हम सब एक परिवार हैं, तभी इस दुनिया में शांति आ सकती है। यह शांति आएगी कैसे? शांति की ओर पहला कदम क्षमा है।
आप चाहे खाना खाएं या पानी पिएं या सांस लें, ये सब कृपा ही है। हाइड्रोजन के दो भाग ऑक्सीजन के एक भाग के साथ मिल कर जीवन देने वाला पानी बनाते है। यह भी कृपा ही है।
हर प्राणी में इच्छाएं होती हैं। ये इच्छाएं मन से उत्पन्न होती हैं, जो उससे तरह-तरह के काम करवाती हैं। इसलिए मन के भावों को जानना बहुत जरूरी है। अगर आप मन के भावों को समझ गए तो यह जानना आपके लिए सहज होगा कि किससे कब और क्या काम लिया जाए
Goddess Bhadrakali: भद्रकाली, मां काली का सौम्य रूप है। भद्रकाली युद्ध की देवी हैं। केरल में इन्हें करियम काली देवी के नाम से जाना जाता है, जो किसी भी व्यक्ति के भाग्य को बदलने की शक्ति रखती हैं।
ईश्वर को पाने का सहज-सरल उपाय है, ईश्वर के प्रेम में पड़ जाना। जब आप ईश्वर को जान जाएंगे, तब आप उनसे प्रेम करेंगे, और जब आप उनसे प्रेम करेंगे, तब आप स्वयं को उन्हें समर्पित कर देंगे।
महात्मा बुद्ध के पास एक राजकुमार दीक्षा के लिए आया। कुछ समय पश्चात राजकुमार दीक्षित हो गया। एक दिन बुद्ध ने उसे किसी श्राविका के घर भिक्षा के लिए भेजा। जब वह भिक्षु भिक्षा के लिए जा रहा था तो रास्ते में चलते-चलते उसे खयाल आया कि जो भोजन मुझे प्रिय है, वह तो अब मुझे मिलेगा नहीं।
देवर्षि नारद भगवान के विशेष कृपापात्र और लीला-सहचर हैं। भगवान के अवतरण के समय ये उनकी लीला के लिए भूमिका तैयार करते हैं।
मन में किसी भी प्रकार की इच्छा न हो, इसकी कामना करना भी एक इच्छा है। अनंत इच्छाओं के अधीन मन को साधना सरल नहीं है। इस बेकाबू मन को काबू में करने के लिए ध्यान जरूरी है और ‘ध्यान’ पर ध्यान केंद्रित करने के लिए वैराग्य जरूरी है
Buddha Purnima: जन्म, संबोधि और निर्वाण- बुद्ध के जीवन की ये तीन महत्वपूर्ण घटनाएं वैशाख पूर्णिमा के दिन हुईं। यह सिद्धार्थ के बुद्धत्व तक की यात्रा है, जिसमें उन्होंने जन-कल्याण के लिए महानिर्वाण को भी त्याग दिया।
आत्म-रमण की अवस्था सहजानंद की अवस्था है। अपने सहज-स्वरूप में अवस्थित होना परमानंद की उत्कृष्ट अवस्था है। हम आत्म-ज्ञान के द्वारा ही परम सुख की अनुभूति कर सकते हैं। आत्म-ज्ञान अंत: स्थल को स्पर्श करने वाला ज्ञान है।
Adi Shankaracharya Jayanti: पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार आदि शंकराचार्य को भगवान शिव के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। भगवान शंकर के दर्शन से आचार्य शंकर को बहुत बल मिला। पढ़ें यह रोचक किस्सा-
मन एक सेतु की भांति है। इसे पार करना है तो दूसरे किनारे को प्राप्त करना ही होगा। लेकिन तुमने तो सेतु पर ही घर बना लिया है। तुमने सेतु पर रहना शुरू कर दिया है। तुम मन के साथ जुड़ गए हो। तुम पड़े हो जाल में, क्योंकि तुम कहीं नहीं हो। इस अराजक मन को साधे बिना तुम कहीं नहीं पहुंच सकते।
Meditation: किसी भी स्थूल या दृश्यमान वस्तु को देखने के लिए आंखों की आवश्यकता होती है। लेकिन सूक्ष्म या अदृश्यमान वस्तु को देखने के लिए मनुष्य को जिस दृष्टि की जरूरत होती है, उसे चेतना या आत्मा का प्रकाश कहते हैं।