आदि योगी हैं शिवः सद्गुरु जग्गी वासुदेव
सद्गुरु जग्गी वासुदेव एक आधुनिक गुरु हैं। विश्व शांति और खुशहाली की दिशा में निरंतर काम कर रहे सद्गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के करोड़ों लोगों को एक नई दिशा मिली है। सद्गुरु ने योग के...
सद्गुरु जग्गी वासुदेव एक आधुनिक गुरु हैं। विश्व शांति और खुशहाली की दिशा में निरंतर काम कर रहे सद्गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के करोड़ों लोगों को एक नई दिशा मिली है। सद्गुरु ने योग के गूढ़ आयामों को आम आदमी के लिए इतना सहज बना दिया है कि हर व्यक्ति उस पर अमल कर के अपने भाग्य का स्वामी खुद बन सकता है ।
हर वर्ष ईशा योग केंद्र, कोयंबत्तूर (तमिलनाड़ु) में महाशिवरात्रि का आयोजन बहुत बड़े पैमाने पर होता है। हर साल लाखों लोग आध्यात्मिक लाभ उठाने के लिए इस आयोजन में हिस्सा लेते हैं। रातभर चलने वाला महाशिवरात्रि उत्सव भारत के पवित्र त्योहारों में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण है। महाशिवरात्रि, जो साल की सबसे अंधेरी रात होती है, आदियोगी शिव की कृपा का उत्सव मनाने के लिए होती है। आदियोगी शिव को आदिगुरु यानी पहला गुरु भी माना जाता है और उन्हीं से योग परंपरा की शुरुआत हुई है। इस रात को ग्रहों की स्थिति कुछ ऐसी होती है कि मानव शरीर में ऊर्जा का सहज ही शक्तिशाली उफान होता है। इस रात में, रातभर जगे रहना और अपनी रीढ़ को सीधा रखना एक व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक खुशहाली के लिए बहुत फायदे का होता है। इस वर्ष महाशिवरात्रि के दिन आदियोगी के 112 फुट मुख का अनावरण किया गया। इस अवसर पर सद्गुरु ने हिंदुस्तान के सीनियर फीचर संपादक जयंती रंगनाथन को दिए इंटरव्यू में कई दिलचस्प बातें बताईं-
आदियोगी शिव कौन हैं? आज के समय में उनका क्या महत्व है?
सद्गुरु- योग संस्कृति में, शिव को किसी देवता के रूप में नहीं, बल्कि आदियोगी शिव अथवा पहले योगी के रूप में, योग के मूलदाता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने ही सबसे पहले, मनुष्य के मस्तिष्क में यह बीज बोया कि यदि कोई कोशिश करना चाहे, तो वह विकास कर सकता है। ऐसी कोई संस्कृति नहीं है, जिसने आदियोगी शिव के योग विज्ञान से लाभ न उठाया हो। योग हर जगह किसी धर्म, मान्यता या दर्शन के रूप में नहीं, बल्कि रूपांतरण की विधियों के रूप में पहुँचा। बदलते समय के साथ, कई प्रकार की विकृतियाँ आईं, परंतु फिर भी, अनजाने में ही, आज दुनिया में लाखों लोग कोई न कोई योगाभ्यास कर रहे हैं। यह मानवता के इतिहास में एकमात्र ऐसी चीज़ है, जो लोगों पर जबरन लागू किए बिना हजारों सालों से चली आ रही है। यह बहुत ज़रूरी है कि इस ग्रह पर आने वाली पीढ़ियां विश्वास करने वाली नहीं, बल्कि खोज करने वाली हों। तर्क व विज्ञान की कसौटी पर ख़रे न उतरने वाले दर्शन, विचारधाराएँ, विश्वास प्रणालियां खुद ब खुद आने वाले दशकों में समाप्त हो जाएंगे, आप देखेंगे कि लोगों के भीतर मुक्ति की तड़प पैदा होगी। जब वह तड़प पैदा होगी, तो आदियोगी शिव तथा योग विज्ञान बहुत महत्वपूर्ण हो उठेंगे।
आदियोगी शिव का यह मुख इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
सद्गुरु- आदियोगी का यह मुख, इस ग्रह पर अपने-आप में सबसे विशालतम मुख है। दुनिया में आदियोगी को प्रतिष्ठित रूप में स्थापित करने के पीछे सोच यह है कि लोगों को यह समझ आ सके कि केवल बोध को बढ़ाने से ही अंतत: जीवन को संवारा जा सकता है। हम एक और स्मारक नहीं बनाना चाहते, हम इसे आत्म-रूपांतरण के लिए प्रेरक बल के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं। दुनिया में एक नई जागृति की शुरुआत के लिए आदियोगी शिव महत्वपूर्ण हैं। आदियोगी शिव के इस 112 फु़ट लंबे मुख का अनावरण, 24 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन संपन्न हुआ।
112 फु़ट ही क्यों? इस अंक का क्या विशेष महत्व है?
सद्गुरु- प्रतीकात्मक रूप से, 112 एक महत्वपूर्ण अंक है, क्योंकि आदियोगी शिव ने मनुष्यों के लिए 112 संभावनाओं के द्वार खोले, जिनके माध्यम से वे अपनी परम क्षमता तक पहुंच सकते हैं। मानवता के इतिहास में पहली बार, आदियोगी शिव ने यह विचार दिया कि प्रकृति के मौलिक नियम हमेशा के लिए बांध कर नहीं रख सकते। अगर कोई कोशिश करना चाहे तो वह सभी सीमाओं से परे जाकर मुक्ति पा सकता है, और मानवता को जड़ता से चेतन विकास की ओर अग्रसर कर सकता है। परंतु, इसका एक वैज्ञानिक महत्व भी है - मनुष्य के तंत्र में 112 चक्र हैं, जिनके द्वारा आप जीवन के 112 आयामों का अन्वेषण कर सकते हैं। यह मुख कोई इष्ट या मंदिर नहीं, यह एक जबरदस्त प्रेरणा है। ईश्वर की खोज में, आपको ऊपर देखने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि यह कहीं और मौजूद नहीं है। इन सभी 112 विधियों में से हरके के माध्ययम से आप अपने भीतर के चैतन्य को अनुभव कर सकते हैं। आपको उनमें से किसी एक का चुनाव करना है।
यह निर्माण कब आरंभ हुआ? इस परियोजना को पूरा होने में कितना समय लगा?
सद्गुरु- हमें मुख का नमूना तैयार करने में ढाई वर्ष का समय लगा, परंतु हमारी इनहाउस टीम ने आठ माह में इसका निर्माण कर दिखाया। यह इंजीनियरिंग की अनूठा मिसाल है, जिसे बहुत ही अद्भुत तरीके से पूरा किया गया है। यह मुख केवल कलात्मक ही नहीं, ज्यामीति के तौर पर इसका महत्व है। धातु की प्रतिमा को गढ़ने का यह एक अनूठा तरीका है!
क्या आप दूसरे स्थानों पर भी इसी तरह आदियोगी शिव के मुखों की स्थापना करेंगे?
सद्गुरु- हां, हम देश के चारों कोनों में, आदियोगी शिव के 112 फु़ट ऊंचे मुखों की स्थापना करना चाहते हैं। इनमें से पहला, दक्षिण में, कोयम्बटूर के ईशा योग केंद्र में है। पूरब में, इसकी स्थापना वाराणसी में होगी। उत्तर में, यह दिल्ली के कहीं उत्तर में होगा और पश्चिम में इसकी स्थापना मुंबई में होगी।
आदियोगी को किस धातु से बनाया गया है? इसे कैसे खड़ा किया गया? इस मुख का कुल भार कितना है?
सद्गुरु- इसे स्टील से बनाया गया है। हमने अनिवार्य तौर पर, धातु के टुकड़ों को एक साथ लगा कर, इसे तैयार किया है। ऐसा करना बहुत कठिन था, परंतु यही सबसे किफ़ायती तरीका रहा। यह अपने-आप में अनूठा है - आज से पहले, इसे पहले कहीं प्रयोग में नहीं लाया गया। इंजीनियरिंग के लिहाज से यह एक उल्लेखनीय उदाहरण है। हमने इसे बहुत कम बजट के साथ, अनूठे देसी अंदाज़ में तैयार किया है। इसके अलावा, हमने आदियोगी शिव को इस तरह तैयार किया है कि इसके रख-रखाव पर कम से कम खर्च हो, जो कि बहुत लंबे समय तक बहुत मायने रखेगा।