
Aja ekadashi katha in hindi: अजा एकादशी पर पढ़ी जाती है राजा हरिशचंद्र और गौतम मुनि की कथा
संक्षेप: Aja ekadashi vrat katha kahani भाद्रपद महीने में दो एकादशी आती हैं। जन्माष्टमी के बाद पड़ने वाली एकादशी को अजा एकादसी कहते हैं। इस साल अजा एकादशीआज 19 अगस्त को मनाई जा रही है अगर आप भी व्रत रख रहे हैं, तो यहां व्रत की कथा पढ़ सकते हैं
इस साल अजा एकादशी 19 अगस्त को है। पुराणों के अनुसार एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। कृष्ण बोले-भादो मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है। इसका महत्व गौतम मुनि ही जानते हैं, भाद्रपद मासके कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम 'अजा' है, वह सब पापों का नाश करने वाली बताई गई है। जो भगवान् केशव का पूजन करके इसका ब्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। पूर्वकाल में हरिश्चन्द्र नामक एक विख्यात चक्रवर्ती राजा हो गये हैं, जो समस्त भूमण्डल के स्वामी और सत्यप्रतिज्ञ थे। एक समय किसी कर्मका फलभोग प्राप्त होने पर उन्हें रज्य से भ्रष्ट होना पड़ा । जिसने युगों का परिवर्तन कर दिया। कथा के अनुसार सूर्यवंश में राजा हरिशचंद्र अयोध्या में हुए थे। उनके द्वार पर एक श्याम पट लगा था, जिसमें मणियों से लिखा हुआ यह लेख था -इस द्वार में मुंह मांगा दान दिया जाएगा। राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचा । फिर अपने को भी बेच दिया। पुण्यात्मा होते हुए भी उन्हें चाण्डालकी दासता करनी पड़ी। वे मुर्दों का कफन लिया करते थे। इतनेपर भी नृपश्रेष्ठ हरिश्न्द्र सत्यसे विचलित नहीं हुए। इस प्रकार चाण्डाल की दासता करते उनके अनेक साल व्यतीत हो गए। इससे राजा को बड़ी चिन्ता हुई वे अत्यन्त दुःखी होकर सोचने लगे--'क्या करूं ? कहां जाऊं ? कैसे मेरा उद्धार होगा ?' इस प्रकार चिंता करते-करते वे शोक के समुद्र में डूब गए। राजाको आतुर जानकर कोई मुनि उनके पास आए, वे महर्षि गौतम थे।

श्रेष्ठ ब्राह्मण को आया देख नृपश्रेष्ठ ने उनके चरणोंमें प्रणाम किया और दोनों हाथ जोड़ गौतमके सामने खड़े होकर अपना सारा दुःखमय समाचार कह सुनाया। राजा की बात सुनकर गौतम ने कहा--'राजन् ! भादोंके कृष्णपक्ष में अत्यन्त कल्याणमयी 'अजा' नामकी एकादशी आ रही है, जो पुण्य प्रदान करने वाली है। इसका ब्रत करो । इससे पाप का अन्त होगा। तुम्हारे भाग्य से आज के सातवें दिन एकादशी है। उस दिन उपवास करके रातमें जागरण करना ।' ऐसा कहकर महर्षि गोतम अन्तर्धान हो गए। मुनिकी बात सुनकर राजा हरिश्वन्द्रने उस उत्तम ब्रतका अनुष्ठान किया | उस ब्रत के प्रभावसे राजा सारे दुःखों से पार हो गए । उन्हें पत्नी का सन्निधान ओर पुत्रका जीवन मिल गया । आकाश में दुन्दुभियाँ बज उठी | देवलोकसे फूलोंकी वर्षा होने लगी। एकादशी के प्रभाव से राजा ने अकण्टक राज्य प्राप्त किया और अन्त में वे पुरजन तथा परिजनोंके साथ स्वर्गलोक को प्राप्त हो गये। राजा युधिष्ठटिर ! जो मनुष्य ऐसा ब्रत करते हैं, वे सब पापोंसे मुक्त हो स्वर्गलोकमें जाते हैं। इसके पढ़ने और सुननेसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है।





