अहोई अष्टमी व्रत आज, जानें शुभ मुहूर्त, तारे निकलने का समय और चंद्रोदय टाइम
आज अहोई अष्टमी है। यह पुष्य नक्षत्र और अमृत सिद्धि योग में मनाई जाएगी जो अति शुभकारक है। यह व्रत माताएं पुत्रों की सलामती के लिए रखती हैं। अहोई अष्टमी उसी दिन मनाई जाती है आठ दिन बाद जिस दिन दीवाली होती है। इस दिन माताएं अपनी संतान के लिए इस व्रत को करती है।

आज अहोई अष्टमी है। यह पुष्य नक्षत्र और अमृत सिद्धि योग में मनाई जाएगी जो अति शुभकारक है। यह व्रत माताएं पुत्रों की सलामती के लिए रखती हैं। अहोई अष्टमी उसी दिन मनाई जाती है आठ दिन बाद जिस दिन दीवाली होती है। इस दिन माताएं अपनी संतान के लिए इस व्रत को करती है। वह पूरा दिन निर्जल रहकर शाम को तारे को अर्घ्य देकर व्रत खोलती है और अहोई माता से अपनी संतान की दीर्घ आयु की कामना करती है। पारंपरिक रूप से घर की दीवार पर गेरू से माता स्याऊ और उनके बच्चों का चित्र बनाकर पूजा की जाती है। व्रत करने वाली महिलाएं तारों के उदय तक निर्जला व्रत रखती हैं। तारों के उदय के बाद उन्हें अर्घ्य देकर पूजा सम्पन्न की जाती है।
चार शुभ संयोग का समय- इस बार की अहोई अष्टमी व्रत पर चार शुभ संयोग बन रहे हैं। अहोई अष्टमी के दिन रवि योग, परिधि योग, शिव योग, पुनर्वसु नक्षत्र रहेंगे। व्रत पर रवि योग सुबह 6:21 से बनेगा जो दोपहर 12:26 मिनट तक रहेगा। वहीं परिधि योग भी सूर्योदय से लेकर सुबह 8:10 तक रहेगा उसके बाद शिवयोग शुरू होगा, जो पूर्ण रात्रि तक रहेगा। 14 अक्टूबर को सुबह 5:55 तक शिवयोग माना जाएगा। इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र दोपहर में 12:26 से शुरु होगा, जो पूरे दिन इस राशि में रहेगा।
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त - 05:53 पी एम से 07:08 पी एम
अवधि - 01 घण्टा 15 मिनट्स
तारों को देखने के लिये सांझ का समय - 06:17 पी एम
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय - 11:20 पी एम
पूजा विधि: व्रत करने वाली माताएं प्रातः उठकर स्नान करें। इसके बाद माता अहोई की पूजा कर संतान की उन्नति, शुभता और लंबी आयु की कामना करें। माता पार्वती की पूजा भी साथ-साथ की जाती है, क्योंकि उन्हें भी संतान की रक्षा करने वाली माता माना जाता है। उपवास करने वाली महिलाओं को व्रत के दौरान क्रोध या बुरे विचार से बचना चाहिए। इसके साथ ही दिन में सोना नहीं चाहिए। अहोई माता की पूजा के लिए माता का चित्र गेरू रंग में बनाया जाता है, जिसमें माता और उनके सात पुत्र अंकित होते हैं। संध्या काल में इस चित्र की पूजा की जाती है और कथा का श्रवण किया जाता है। पूजा के बाद सास-ससुर और घर के बड़ों का आशीर्वाद लें। तारे निकलने पर व्रत का समापन होता है। तारों को करवे से अर्घ्य दें और तारों की आरती उतारें।





