
आज अहोई अष्टमी पर कैसे करें पूजा, जानें पूजा मुहूर्त, चांद व तारों को देखने का समय
संक्षेप: Ahoi Ashtami 2025 Pooja: अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कार्तिक कृष्णपक्ष मास की अष्टमी तिथि पर रखा जाता है। इस व्रत को अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है। इस बार यह पर्व आद्रा व पुनर्वसु नक्षत्र के शुभ संयोग में मनाया जाएगा।
Ahoi Ashtami 2025: अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कार्तिक कृष्णपक्ष मास की अष्टमी तिथि पर रखा जाता है। इस व्रत को अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है। इस बार यह पर्व आद्रा व पुनर्वसु नक्षत्र के शुभ संयोग में मनाया जाएगा। पंचांग अनुसार, अष्टमी तिथि 13 अक्टूबर को 12:24 पी एम पर प्रारम्भ होगी, जिसका समापन अगले दिन 11:09 ए एम पर होगा। ऐसे में 13 अक्टूबर को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाएगा। इस बार अहोई अष्टमी पर दो विशेष योग बना रहे हैं। अहोई अष्टमी के दिन रवि योग, शिव योग बन रहे हैं। रवि योग सुबह 6:21 से बनेगा जो दोपहर 12:26 मिनट तक रहेगा। वहीं, सुबह 8:10 के बाद शिवयोग शुरू होगा, जो पूर्ण रात्रि तक रहेगा। 14 अक्टूबर को सुबह 5:55 तक शिवयोग माना जाएगा। इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र दोपहर में 12:26 से शुरु होगा, जो पूरे दिन रहेगा।

पूजा मुहूर्त
05:53 पी एम से 07:08 पी एम
अवधि - 01 घण्टा 15 मिनट्स
चांद व तारों को देखने का समय
तारों को देखने के लिये समय - 06:17 पी एम
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय - 11:20 पी एम
अहोई अष्टमी पर कैसे करें पूजा
अहोई व्रत के दिन व्रत करने वाली माताएं प्रात: उठकर स्नान करें। पूजा पाठ कर माता अहोई से संतान की उन्नति, शुभता और आयु वृद्धि की कामना करें व व्रत संकल्प लें। अहोई माता की पूजा करने के लिए अहोई माता का चित्र गेरू रंग से बनाया जाता है। इस चित्र में माता, सेह और उसके सात पुत्रों को अंकित किया जाता है। संध्या काल में इन चित्रों की पूजा की जाती है। चौकी पर पीले या लाल रंग का साफ वस्त्र बिछाएं। चौकी समेत पूजन के स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें। अहोई माता को अष्ट कोणिय रूप में चौकी पर पूर्वोत्तर दिशा में स्थापित करें। माता का जलाभिषेक करें। धूप, दीप, फूल, फल, चंदन, चुनरी, व शृंगार का सामान चढ़ाएं। माता के नीचे 7 बच्चों के प्रतीक बनाकर, हथेली में 7 दाने गेहूं के लेकर कहानी कहे व सुनें। गुड़ का भोग अवश्य लगाएं। बायना उपहार प्रदान कर अपनी संतान के लिए आशीर्वाद लें। श्रद्धा के साथ माता की आरती करें। इसके बाद सास-ससुर और घर में बड़ों आशीर्वाद लें। तारे निकलने पर इस व्रत का समापन होता है। तारों को करवे से अर्घ्य देकर तारों की आरती उतारें। इसके बाद संतान से जल ग्रहण कर, व्रत पूरा करें। अंत में क्षमा प्रार्थना करना न भूलें।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।





