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नीतीश का अंतिम चुनाव का दांव, क्‍या बिहार के रण में कोई गुल खिला पाएगा यह ब्रह्मास्त्र'?   

'सुशासन बाबू' के नाम से जाने जाने वाले बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के आखिरी चरण के लिए प्रचार के आखिरी दिन अपने संन्‍यास के बारे में संकेत देते हुए...

नीतीश का अंतिम चुनाव का दांव, क्‍या बिहार के रण में कोई गुल खिला पाएगा यह ब्रह्मास्त्र'?    
प्रमुख संवाददाता ,पटना Thu, 05 Nov 2020 07:55 PM
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'सुशासन बाबू' के नाम से जाने जाने वाले बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के आखिरी चरण के लिए प्रचार के आखिरी दिन अपने संन्‍यास के बारे में संकेत देते हुए कहा कि यह उनका अंतिम चुनाव है। नीतीश के इस ऐलान से देश की राजनीति में नई हलचल मच गई और बिहार के रण में जेडीयू की एक नई रणनीति भी सामने आई। 7 नवंबर को 78 सीटों के लिए होने वाले मतदान से ठीक पहले बिहार के लोगों के सामने नीतीश की इस भावुक अपील का क्‍या असर पड़ा यह तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा लेकिन फिलहाल बिहार में सबसे बड़ा सवाल यह है कि 43 साल से राजनीतिक सफलता की इबारत लिख रहे, अब तक छह बार मुख्‍यमंत्री रह चुके और 15 साल से बिहार पर एकछत्र राज कर रहे नीतीश क्‍या वाकई संन्‍यास ले लेंगे? क्‍या इस भावुक अपील के बाद उन्‍हें एक और मौका मिलेगा।

गुरुवार को पूर्णिया की रैली में सीएम नीतीश कुमार ने ऐलान किया कि मौजूदा चुनाव उनका आखिरी चुनाव है। नीतीश कुमार ने धमदाहा विधानसभा में आखिरी जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि यह मेरा आखिरी चुनाव है। अंत भला तो सब भला। इसके बाद नीतीश ने लोगों से एनडीए उम्‍मीदवार को वोट देने की अपील की। नीतीश की इस भावुक अपील  के बाद बिहार में पूछा जाने लगा कि क्‍या नीतीश को एक आखिरी मौका मिलेगा। नीतीश की इस अपील को उनके ब्रह्मास्‍त्र के तौर पर देखा जा रहा है। 

ऐलान से नीतीश ने चौंकाया
मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के 'अंतिम चुनाव' वाले ऐलान ने गुरुवार को उनके विरोधियों के साथ-साथ उनकी पार्टी और भाजपा को भी चौंका दिया। इसके पहले नीतीश कुमार से जब कभी उनके रिटायरमेंट के बारे में पूछा जाता तो वह सवाल टाल देते थे। पिछले दिनों कुछ चैनलों को दिए इंटरव्‍यू में भी उन्‍होंने इस सवाल को टालते हुए कहा था कि 'इस बारे में मत पूछिए, जब तक जनता काम करने का मौका देगी, काम करेंगे।'  इसीलिए गुरुवार को उन्‍होंने आखिरी चुनाव वाला ऐलान किया तो हर कोई चौंक गया। 

जदयू ने मिसाल तो राजद-कांग्रेस ने देर से लिया निर्णय कहा
नीतीश कुमार के इस ऐलान को राजनीतिक गलियारों में हर कोई अपने-अपने नजरिए से देख रहा है। जद यू ने इसे मिसाल कहा है तो राजद और कांग्रेस इसे देर से किया गया ऐलान बता रहे हैं। जद यू के नेता इम्तियाज अहमद ने कहा कि नीतीश जी ने पूरी जिंदगी जनता की सेवा की है। वह सूफी-संतों का सम्‍मान करते रहे हैं। उनका यह ऐलान उनकी बेदाग छवि और सेवा से परिपूर्ण व्‍यक्तित्‍व की ही एक कड़ी है। राजद के नेता रामबली चंद्रवंशी ने कहा कि उन्‍हें नीतीश कुमार के इस ऐलान की लम्‍बे समय से प्रतीक्षा थी। उन्‍होंने काफी देर लगा दी। राजद नेता ने कहा कि उनके नेता तेजस्‍वी यादव लगातार यह कह रहे थे कि नीतीश जी थक चुके हैं। कांग्रेस नेता चंद्रप्रकाश ने कहा कि नीतीश कुमार ने यदि  सोच-समझकर किसी राजनीतिक फायदे के लिए यह ऐलान किया है तो उन्‍हें समझ लेना चाहिए कि ऐसा कतई नहीं होगा। वहीं भाजपा के प्रेमरंजन पटेल ने कहा कि नीतीश जी ने किन संदर्भों में यह ऐलान किया है उसे समझना होगा। नीतीश कुमार यदि चाहें तो भी जनता उन्‍हें बिहार की राजनीति से अलग नहीं होने देगी। उन्‍होंने कहा कि चुनाव में जिस तरह विपक्ष के नेता उनके प्रति शब्‍दों का प्रयोग कर रहे हैं, हो सकता है कि उससे उनका मन आहत हुआ हो। उसी पीड़ा में उन्‍होंने यह ऐलान कर दिया हो। 

69 बरस के नीतीश ने 43 साल की सियासत में देखे कई उतार-चढ़ाव 
बिहार के सीएम नीतीश कुमार की उम्र इस वक्‍त 69 साल है। उनका राजनीतिक कॅरियर 1977 में शुरू हुआ था। 43 साल की सियासत में नीतीश ने तमाम उतार चढ़ाव देखे हैं। आइए डालते हैं नीतीश कुमार के सियासी सफर पर एक नज़र-

नीतीश कुमार, छह बार बिहार के मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। तीन मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक, 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010 तक, 26 नवंबर 2010 से 19 मई 2014 तक, 22 फरवरी 2015 से 19 नवंबर 2015 और 20 नवंबर 2015 और 2015 से अभी तक वह बिहार के सीएम बने हुए हैं। 

मैकेनिकल इंजीनियर ने जेपी-लोहिया-कर्पूरी ठाकुर और जार्ज से सीखे राजनीति के गुर

बिहार के पटना इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले नीतीश कुमार का जन्म साल 1951 में हुआ था। नीतीश का उपनाम मुन्ना है। नीतिश के पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे। नीतीश ने राजनीति के गुण जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, कर्पूरी ठाकुर और जॉर्ज फर्नाडीज से सीखे थे। नीतीश ने 22 फरवरी 1973 को पेशे से इंजीनियर मंजू कुमारी सिन्हा से शादी की थी। नीतीश कुमार का एक बेटा है जो बीआईटी से ग्रेजुएट है। 

ऐसे हुई राजनीतिक सफर की शुरुआत  
नीतीश के राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1977 में हुई थी। इस साल नीतीश ने जनता पार्टी के टिकट पर पहला विधानसभा चुनाव लड़ा। साल 1985 को नीतीश बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए। इस बीच साल 1987 को नीतीश कुमार बिहार के युवा लोकदल के अध्यक्ष बने। 1989 को नीतीश कुमार को जनता दल का महासचिव बना दिया गया। साल 1989 नीतीश के राजनीतिक करियर के लिए काफी अहम था। इस साल नीतीश 9वीं लोकसभा के लिए चुने गए। लोकसभा के लिए ये नीतीश का पहला कार्यकाल था। इसके बाद साल 1990 में नीतीश अप्रैल से नवंबर तक कृषि एवं सहकारी विभाग के केंद्रीय राज्य मंत्री रहे।

साल 1991 में दसवीं लोकसभा का चुनाव हुए नीतीश एक बार फिर से संसद में पहुंचे। इसी साल नीतिश कुमार जनता दल के महासचिव बने और संसद में जनता दल के उपनेता भी बने। करीब दो साल बाद 1993 को नीतीश को कृषि समित का चेयरमैन बनाया गया। एक बार फिर से आम चुनाव ने दस्तक दी। साल 1996 में नीतीश कुमार 11वीं लोकसभा के लिए चुने गए। नीतीश साल 1996-98 तक रक्षा समिति के सदस्य भी रहे। साल 1998 ने नीतीश फिर से 12वीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1998-99 तक नीतीश कुमार केंद्रीय रेलवे मंत्री भी रहे।

एक बार फिर चुनाव हुए साल 1999 में नीतीश कुमार 13वीं लोकसभा के लिए चुने गए। इस साल नीतीश कुमार केंद्रीय कृषि मंत्री भी रहे। साल 2000 नीतीश के राजनीतिक करियर का सबसे अहम मोड़ था। इस साल नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। उनका कार्यकाल 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक चला। साल 2000 में नीतीश एक बार फिर से केंद्रीय कृषि मंत्री रहे। साल 2001 में नीतीश को रेलवे का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया।

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साल 2001 से 2004 तक नीतीश केंद्रीय रेलमंत्री रहे। साल 2002 के गुजरात दंगे भी नीतीश कुमार के कार्यकाल के दौरान हुए थे। साल 2004 में नीतीश 14वीं लोकसभा के लिए चुने गए। साल 2005 में नीतीश कुमार एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने। बतौर 31वें मुख्यमंत्री नीतीश का ये कार्यकाल 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010 तक चला। 2010 में भी उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन कार्यकाल के पूरा होने के पहले ही 2014 के लोकसभा चुनाव में हुई करारी हार का जिम्मा लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और जीतन राम मांझी को मुख्‍यमंत्री पद का कार्यभार दिया था।

22 फरवरी 2015 को उन्होंने एक बार फिर बिहार की कमान संभाली और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले राजग की चुनौती को मुंहतोड़ जवाब देते हुए बिहार की सत्ता पर काबिज हुए और महागठबंधन की सरकार बनाई। हालांकि 18 महीने बाद ही राजद से उनका मोहभंग हो गया और यह गठबंधन टूट गया। इसके बाद नीतीश ने एक बार फिर भाजपा की मदद से एनडीए में शामिल होकर बिहार में अपनी सरकार बनाई। 

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